Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: (-); अंति: जाणुं वरस तणुं तुं नाम, गाथा-१११, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) १०१००७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पठ. श्रावि. अनोप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x११, ११४२६). ___ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) १०१०१० (4) नवपद विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-९(२ से ४,६,८ से १२)=५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०.५४११,७४२१-२४). नवपद विधि, रा., गद्य, आदि: प्रभातरो संझारा पडिक्कमणो; अंति: (-), (पू.वि. मतिज्ञान विधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) । १०१०११ (#) भीनमालपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्रले. मु. उमेदरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ८x२०-२३). पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: (-); अंति: सीस पुन्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) १०१०१२. योगचिंतामणि की चूर्णादि निर्माण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४११.५, १६४३५-४१). योगचिंतामणि-चूर्णादि निर्माण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उदरैरी मीगणी टां १ नानी; अंति: (-), ___ (पू.वि. लुखमादि गुटिका विधि अपूर्ण तक है.) १०१०१३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-१(१)-६२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा., जैदे., (२३४१०, १३४४०-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-२२५ अपूर्ण तक है.) १०१०१४ (+#) संग्रहणीरत्नसूत्र व देवांगना संख्यागाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, पृ. २अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीर जिणतित्थं, गाथा-२७६, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है., वि. अंकस्थापना सहित.) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: नपुंसकवेदांत, (पू.वि. गाथा-१७ की टीका अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इंद्रपत्नीसंख्या गाथा, पृ. १२आ, संपूर्ण. देवांगनासंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडा कोडीउ पंचासी; अंति: चवंति इंदस्स जम्मंमि, गाथा-२. १०१०१५ (+) कल्पसूत्र सह कल्पबोधिनी वृति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६-२४(१,४२,४४,४६,५० से ५५,५७ से ५९,६९,१०२,१११ से ११२,१२२ से १२३,१२८,१३१ से १३४)=१२२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १०४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन वंशवर्णन अपूर्ण है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पबोधिनी वृत्ति, मु. न्यायसागर, सं., गद्य, वि. १७७८, आदिः (-); अंति: (-). १०१०१६. (+#) संग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-१९(२,४ से ६,८ से १०,१३ से २२,३८,४३)=२६, ले.स्थल. बलुदा, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३३-३८). For Private and Personal Use Only

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