________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०११२५. (+#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरो०.सू०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३९). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: कहाकहाणं तहा
णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. १०११२६. फुटकर श्लोक प्रस्ताविक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-२(४ से ५)=६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६४३१-३८). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: स्तस्माद्धर्मो विधीयते, श्लोक-६८,
(पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३१ अपूर्ण से श्लोक-४९ अपूर्ण तक नहीं है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: धर्म थकी समस्त मंगली करी; अंति: (-), (प.वि. बीच के पत्र नहीं
हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुछेक स्थानों पर आंशिक टबार्थ लिखा है.) १०११२७. (+#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-५९(१ से ५८,६२)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विपाक०.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ७४३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-७ अपूर्ण से अध्ययन-७
संपूर्ण तक, अध्ययन-८ अपूर्ण से अध्ययन-९ अपूर्ण तक है.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०११२८. (+#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२०(१ से ५,७ से २१)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:आचारांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, २-५४२०-४०).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देशक-३ अपूर्ण
से उद्देशक-४ अपूर्ण तक, अध्ययन-२ उद्देशक-५ अपूर्ण से उद्देशक-६ व अध्ययन-३ उद्देशक-१ अपूर्ण से उद्देशक-२
अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०११२९ (+#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६x४९).
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-),
(पू.वि. पौषधसूत्र अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः अरिहंतेभ्यः, (२)हे क्षमाश्रमण इच्छामि; अंति:
(-), (वि. मात्र नमस्कार महामन्त्र की छाया संस्तृत में है.) १०११३० (+) स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:स्थानांगसू., संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४-५५).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-९ अपूर्ण तक है.) १०११३१ (+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४९). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-१२ अपूर्ण
तक है.) १०११३२. (+#) कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७X४४-५०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १७९४, ले.स्थल, जैसलमेर. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: भुज्जो
उवदंसे त्तिवेमि.
For Private and Personal Use Only