Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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महाह.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
१. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वेलसागर (गुरु पं. रूपसागर गणि); गुपि.पं. रूपसागर गणि (गुरु
पं. भाग्यचंद गणि); पं. भाग्यचंद गणि; अन्य. मु. राजसागर (गुरु पं. रूपसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. २. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १००९८७. (+) भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देश ९ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भगव० ट०, भग०८०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ५४२५-२८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'छठछठेणं अणिखित्तेणं' पाठांश से 'आउयं च
परिवसणा' पाठांश तक है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १००९८८. यशोधरमहाराज चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, दे., (२३.५४११, ७४२३-२६).
यशोधरमहाराज चरित्र, मु. श्रुतसागरशिष्य, सं., पद्य, आदि: विद्यानंदीश्वरं देवं नाभि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र
नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक नहीं है व श्लोक-५२ अपूर्ण तक लिखा है.) १००९८९ (-) आषाढा- चोढालिउ, अपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २६-१७(१ से १७)=९, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. नथु; पठ. नानचंदजी जसराज रावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११, ६४२६).
आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमरीत सारमी आपो सरसत; अंति:
मालमुनी अधिकार रे, ढाल-४, संपूर्ण. १००९९०. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १४-८(१ से ८)=६, प्र.वि. पत्रक्रम का उल्लेख क्रमशः नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२१४११.५, ९४३८). साधप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अतिचारसूत्र अपूर्ण से है व 'पडि० भंते वदपडिमाए' सूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) १००९९५ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व धम्मोमंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२३.५४११, ९४२९). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. धम्मोमंगल पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति:
___ साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. १००९९६ (+) षट्पंचाशिका व भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. धनविजय (गुरु
पं. शांतिविजय गणि); गुपि.पं. शांतिविजय गणि (गुरु भट्टा. विजयरत्नसूरि); भट्टा. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. षट्पंचाशिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, पे.वि. हुंडी:षट्पंचाशि.
आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: देशोवयोजातिश्च लग्नपात्. २.पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. ३अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, पे.वि. हुंडी:भुवनदीपक, भुवनदीप.
__ आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: कृतं श्रीपद्मसूरिभिः, श्लोक-१७३. १००९९८. (+#) चित्रसंभूति रास, अपूर्ण, वि. १७५७, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७-२(५,१८)=२५, प्रले. मु. रुपविजय;
गुभा. ग. विमलविजय (गुरु ग. मानविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. मानविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ); पंन्या. हर्षविजय (गुरु पंन्या. गुणविजय, तपागच्छ); पंन्या. गुणविजय (गुरु पंन्या. पुण्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चित्रसंभूतरास., पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१०.५, १५४३६-४४).
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