Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००९७२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८६-२ (६३*, ७७*) +२ (६४,७६)=८६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ५X३६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स: अति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-२२ गाथा-३५तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन- १९ गाथा- १७ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक व गाथा ६७ अपूर्ण से नहीं लिखा है.. वि. कथा रहित.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००९७३ (+) लघुशांति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०-४५ (१ से ४५) =५, प्र. वि. प्रारंभिक ४५ पत्रों में नवस्मरण होना चाहिए., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, ३x२२-२६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांतं, अंति जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९, संपूर्ण. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ प्रति अति जैन शासन जयवतो धावो, संपूर्ण १००९७४. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : जीवविचार., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२४.५४१९, ४२८-३२). , १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईव वीर नमिऊण भणामि ; अति रुद्धाओ | सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-वार्थ* मा.गु., गद्य, आदि भुवनलोकनइ प्रकाशिवा दिपक, अति सिद्धांत समुद्र थकी. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा अति: (-) (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- टवार्थ*, मा.गु, गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंति: (-). १००९७६. (+४) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. लेखक ८ की जगह पत्र ९ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x११, १४४१). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. पद्य वि. ७पू, आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ भवणो; अंति: (-), " (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २४१ अपूर्ण तक लिखा है.) १००९७७ (+४) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी कल्पसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५X१०.५, ८४२७-३०). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति (-), (पू. वि. पाठ 'गामठ्ठाणेसु वा नगरठ्ठाणेसु वा' तक है.) १००९८० (+) यशोधर रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ३,७)=५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : यशोधररास., संशोधित., जैदे., (२५X११, १४X३६). यशोधरराजा रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६७१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४२ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक व गाथा ११५ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है.) १००९८१ (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जै, (२४.५X१०.५, १५X४२-४६). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिह अंति (-), (पू.बि. गाथा २७६ तक है.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि (१) नत्वा श्रीवीरजिनं, (२) चउवीसमु तीर्थंकर अंति: (-)१००९८२ (+) बृहत्संग्रहणी व लघुसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी संग्रणीसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५X११, १०X३५-३८). 1 For Private and Personal Use Only

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