Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.)
१०१०६१ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १७५४, श्रावण शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. बोरावडग्राम, प्रले. मु. ठाकुर ऋषि; पठ. मु. हरदास ऋषि (गुरु मु. हेमा ऋषि); गुपि. मु. हेमा ऋषि (गुरु मु. ठाकुर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दसवैका०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३८).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठे; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन- १० चूलिका २.
१०१०६३ (०) मेघमाला, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X११, १२X३१-३५).
मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा. सं., मा.गु., पद्य, आदि तियसिंवनरिवनयं पणमि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९६ अपूर्ण
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तक है.)
१०१०६५ (+) सम्यक्त्वसत्तिरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ६x४०).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि दंसणसुद्धिपयासं, अति: दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा- ७०.
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सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व निर्मलाईनु; अंति: निश्चई हुइ लहइ.
१०१०६६ (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६५७, मध्यम, पृ. १२-१ (१) ११ ले स्थल. नित्रोटक, प्रले. ग. समयसागर (गुरु भु, विजयसागर तपागच्छ); गुपि. मु. विजयसागर (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ) पठ. मु. आनंदसागर (गुरुग समयसागर, तपागच्छ); अन्य. पं. यत्नसागर गणि (गुरु पं. आणंदसागर गणि) मु. सुमतिसागर (गुरु ग. समयसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: भ० टी०. अंत में 'यह प्रत सं. १७९२ आषाढ वदि १० दिन यत्नसागर को दी' ऐसा लिखा है. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संधि सूचक चिह्न - क्रियापद संकेत- ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६x१०.५, १७४५६-७२).
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भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू.वि. लोक-३ अपूर्ण से है.)
भक्तामर स्तोत्र बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि (-); अंति संख्या निवेदिता,
ग्रं. ६९३.
१०१०६७ (+४) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १७०३, पौष शुक्ल ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्रले. नरसिंहदास एड दयालुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, ४X३८).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि साचड वस्तुनउ स्वरुप ते; अंतिः कृता श्रीराजचंद्रसूरिणा
२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७ - १४आ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मर्त्य पाताल; अंति: रूप जे समुद्र तेह थकी. १०१०६८ (+४) संघयणी प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५ फाल्गुन कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. मु. लावण्यसागर
गुभा. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. मनोहरसागर गणि); गुपि. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैद, (२५X१०.५, ८X३६).
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