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तीर्थयात्रा के समय अभी
अमय अनेक स्थानों पर पू०स्वामीजी रागभाव में धर्म नहीं है, शाकानजी स्वामी | के आध्यात्मिक प्रवचन हुए।
शुभराग भीधर्म नहीं है। जीकुछ कहरहे| आत्मज्ञान बिना यहसब है,वहसब मुक्ति के मार्ग में
आगम विरुद्ध [241
कार्यकारी नहीं है,
मा
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नहीं, स्वामी.जी आगमानुसार ही कहते है।
हिममात्र विरोध के लियेही विरोध क्यों करें हमें शास्त्राभ्यासकर ही कुछ कहना चाहिए।
अरे यह क्या कानजी स्वामी जोकुद कहते है वहतो जिनवाणी की ही बात कहते है।
उन्होने हम पर अनन्त उपकार किया है. हमने व्यर्थ ही उनका
विरोध किया.
शंकाल लोगों को पश्चाताप हआ। उन्होने जाकर स्वामीजी से क्षमा
मागी.
यह विरोध तुमने नहीं, तुम्हारे अंदर के कषाय भावने किया है तुम्हारा
कोई दोष नहीं।
हमने तो इन शास्त्रों को आजतक पढ़ा हीनहीं. आपके लिये हमने जाकुछ कहा, उसके लिए हम
शर्मिन्दा है',