Book Title: Kahan Katha Mahan Katha
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Bahubali Prakashan

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Page 28
________________ 126) कानजी-स्वामी के प्रस्थान के बाद नागरिकों समस्त 36 जाति के लगभग 100 व्यक्तियों ने में बड़ी ग्लानि पैदा हुई। प्रस्थान किया। वह आत्मयोगी स्वामीजी को पुन: जावाल में त्यागी महात्मा थे। लायाजाय और उनके अमृतरूपी वचनों का पान किया जाए। PATAN Mithi गुरुदेव जनता की प्रार्थना स्वीकार कर ली। 24 अप्रैल '57कोजावाल में भव्य स्वागत हुआ ठीक है, मैचलंगा। नजा कानजी स्वामीने आत्मधर्म के विषयमें उपदेश दिया। स्वामी जी के साथ आए यात्रियों को श्रीफल वरुपर भेंट किए गए। जावाल से मंगलमय प्रस्थान।

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