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1 मई, 1976, बम्बई स्वामी जी से आत्मधर्म के सम्पादक डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ने साक्षात्कार किया।
हथेली में पसीना आने से शास्त्र के पृष्ठ खराब न हों इसलिए यह छोटी सी लकड़ी रखता हूं। यह जादू की नहीं है।
आप के प्रवचनों से लोग प्रभावित क्यों हो जाते हैं?
सुना है, आपके पास कोई जादू की
लकड़ी का चमत्कार है? जिस पर फेर देते हैं वह आपका भक्त हो जाता है। सम्पन्न हो जाता है।
भ्रमवश कोई एक बार इसे चुरा भी ले गया था।
हमारे पास वीतराग सर्वज्ञ प्रभु की बात है, वही कहते हैं। प्रभावित होने वाले अपनी पात्रता से प्रभावित होते हैं ।।