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सचित्रकथा &lঐশ্যা : ইতিjIr
GIছলাে प्रकाशन
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दो शब्द __पूज्य श्री कानजी स्वामी की जन्म शताब्दी के अवसर पर बाहुबली प्रकाशन, जयपुर की ओर से प्रकाशित यह 'कहान कथा : महान कथा' प्रकाशित करते हुए हमें गौरव का अनुभव हो रहा है।
पूज्य श्री कानजी स्वामी ने अध्यात्म का शंखनाद कर अनेक पामर लोगों को सद्मार्ग पर लगाया है। उनका यह उपकार हम कभी नहीं भुला सकते। इस चित्रकथा के माध्यम से उनके जीवन चरित्र को उजागर करने का प्रयास किया गया है, आशा है यह चित्रकथा आपको रोचक लगेगी।
इसके पूर्व सर्वप्रथम इस प्रकाशन के माध्यम से 'कविवर बनारसीदास' चित्रकथा का प्रकाशन किया गया था जिसकी एक वर्ष में ही 5000 प्रतियाँ समाप्त हो गई। इससे ज्ञात होता है कि हमारा प्रयास विज्ञ पाठकों को पसन्द आया है। अब आगामी प्रकाशनों में आचार्य विद्यानन्द' एवं 'गोम्मटेश्वर बाहबली चित्रकथाओं को लेकर हम आपके समक्ष शीघ्र उपस्थित हो रहे हैं। बच्चों में धार्मिक संस्कार जागृत हों इसी भावना के साथ
- अखिल बंसल Dikrant Patie
मूल्य : पांच रुपए
प्रथम सस्करण : 5200
JHALRAPATAN
आलेख : अखिल बंसल -
चित्रांकन : अनन्तकुशवाहा
प्रकाशकबाहबली प्रकाशन लालकोठी जयपुर, 302015
मुद्रक : कुमार ब्रादर्स प्रिंटिग प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
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Vitrant Patni JHALRÀPATAN
कहानकथा: महान कथा
परमपूज्य आध्यात्मिक संत श्रीकानजी स्वामी काजन्म वि.सं०1946 में वैशाख सुदीद्जको रविवार के दिन काठियावाड़ में उमराला ग्राम में स्थानकवासी जैन-सम्प्रदाय में हुआ था (मोती चन्द्र भाई की पुत्र हुआहे। हां, सुन्दर,
बालक है।
आलेख अखिल बसलएम.ए. चित्रकथा - अनंत कुशवाहा
उजमबाई तुम भाग्यवान हादेखना यह तजस्वी बालक है,बड़ा होकर कोई
बालक श्रीमाल | महापुरुष बनेगा, जातिकी श्री वृद्धिकरेगा.
एक ज्योतिषीने शिश
कीदेखकर कहा
नाम करण हुआ-'कहानकुमार'. अल्पावस्था में ही तेजस्वी मुखपर वैराग्य की झलक थी.
पढ़ने चलोगे कहानबेटे?
कहान बेटा,ये इस उमराना ग्राम की प्राथमिक E शाला के गुरुजी है..
प्रणाम करो.
1800
शिक्षाका
शुभारंभहुआ.
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उमराला की प्राथमिक शाला के गुरुजी के
मकमातृभाषा का ज्ञान कहान को गुरुजी की बात साथ कहान कुमार
आवश्यक हैकहानबेटे, आसानी से याद होगयी, पाठशाला गये
एक दिन शाला सेलौट कर
अगर यह पढ़ाई में तेज नहीं होता तो मैं | आने के बाद- मा.मेरा मन इन पुस्तका)
PY अपनी दकान पर बैठाता.
जैन पाठशाला में नहीं लगता.
लजाऊं.
क्यों कहान?
मोतीचन्द्रजी कहानको जैन पाठशाला में लेगये
प्रत्येक परीक्षा में प्रायः प्रथम रहने के बावजूद एक दिनमां, तुमसमझती
क्यों नहीं
मुझेजो चाहिये इस पढाई में नहीं है.
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हा मा,स्कूल में केवल व्यावहारिक ज्ञानही मिलता है।
MAHARMA
यह सब क्या सोचते बड़े भैय्या, आप कोक्या
मैं तुमसेबड़ा रहते होकहानमैया!अच्छा लगता है?
हूं अत: कोई बड़ा व्यापार करूंगा तथा व्यापार से अच्छी कमाईकरूंगा.
वशाल, कहान कोनदीकी
तरफ घुमाला, और तुम क्या करोगे कहान?
नया क्या देखो भाई,यह संसारका मायाजाल करोगे? / मुझे किंचित भी अच्छा नहीं लगता
मैं तोइसे छोड़ने के लिये (आत्म साधना के उद्देश्य से
जीवन व्यतीत करंगा
में तोजो किसी ने (नहीं किया होगा ऐसा कुछ
नया करुंगा..
मेरा आशीघM
घर आकर सुशाल नै खुशी खुशी'मासे | सारीबातें बताई.
(कितने उच्च विचार है।
नमा ?
उद्देश्य में सफल हो.
(हां बेटा.)
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अल्पावस्था में ही,माता-पिता का स्वर्गवासहोजाने से कहान, खुशाल पर जैसे वज्रपात हुआ.
| आजीविका के लिये कहान, खुशालभाई के साथ पालेज में दुकान पर बैठनेलगे.
हम अकेले
M
रह गये
कहान.
ITRITIES
Pood
कहान, अपने मुकदमेके सिलसिले में कहान की निर्भीकता, निर्देषिता औरसत्यवादिता तुम्हीं बड़ौदा कोर्ट चले जाओ. कीजज पर अमिट छाप पड़ी. उन्होंने आधार मांगे
बिना उनके पक्ष में निर्णण देदिया.
HainA
जाता हूँ भाई, प्रोवोलूंगा.
पर मैं सत्य ही
तिम्हारी सच्चाई से (हम मुकदमाजीत
गये ,धन्यवाद
धन्यवाद क्यों न्यायालय)/आप भी सत्य की पैरवी हमेशा में तो सच ही बोलना -
(करेंगे तो विजयी रहेंगे.. चाहिये.
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पालेज में रहते हुए कहान कुमार कभी कभी नाटक देखने जाते थे,
(A
यहीं रोक दो तांगे वाले.
"आज हम आपको : रामलीला नाटक दिखा रहे हैं.
कभी कभी सारी रात उनपर वैराग्य की धुन सवार रहती,
नाटक भी कई तरह के खेले जाते थे,
S
गुजराती नाटब
नाटक शुरू हो रहा है।
नाटक के वैराग्य प्रेरक दृश्यों का प्रभाव कहान | जी पर विशेष पड़ता था,
एक बार नाटक देखने के पश्चात शिव रमणी रमनार तूं, तूं ही देवनो देव' से प्रारंभ होने वाली, बीस पंक्तियां अपनी नोट बुक में लिख डाली.
मुझे जगत के सब प्रपंचों से
'दूर रह कर आत्मा - 'नुभव प्राप्त करने का प्रयत्न करना
चाहिये,
सांसारिक रस के प्रबल निमित्तों को भी महान आत्मायें वैराग्य का निमित्त बना लेती है :
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न की|न पशुओं के लिये चारा था संवत् 1956 की बात है, उमराला ग्राम अकाल की | चपेट में आगया. 6
न पानी.कृशकाय पशुओं को लेकर ग्वाले इधर उधर भटकते थे,
एक दिनकी बात है,कहानने देखा
(वह ग्वाला रो रहाहै ?
(तुमक्यों रो रहे हो?)
MINUTIVIA
(भैया,अकाल पड़ रहा है...
मैं गाय के लिए चारे का इंतजाम यह दृश्य देखकरकहानकुमार नहीं कर पा रहा हूँ,देखोन, भखके मारे अत्यंत करुणावत होगये, गायकी आंखों से भी आंसूलुढक रहे है।
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सम्वत् 1965 में कहान कुमार ने धार्मिक 4 अक्सर पुस्तक 'अध्यात्म कल्पद्रुम'का -
धार्मिक ग्रन्थों
के अध्ययन में अध्ययन किया,
यहां तक कि पालेज की उस दुकान पर भी उनके हाथ में पुस्तक होती थी.
( कितनी अच्ही
खोये रहते थे.
पुस्तक है.
में इतनी देरसे सामान तौलनेकीकह रहाहूं, आप सुनते ही नहीं,
Na
Vबता तो चुका है. आप इसी ) तरह अध्ययन में खोए रहे तो दुकान चौपट होजायेगी.
KAR
सामान...ओह आपको) स्या क्या चाहिये?
अरे पुईक, वह ग्राहक ठीक कह रहा) वह गुजराती गीत ?...सुनोहै.हमेशा पुस्तकों में न रवोये रहाकरो 'जगतड़ा कहे हे कि भगतड़ा चेला
आइये मामाजी पण घेला न मानसोरे, प्रभुनेत्या पहेला हे आपसे गीत सनना जगतहाकहे थे कि भगतड़ा कालादे.
पण कालो न मानसोरे,प्रसुनेतेव्हाला है
कहानकुमारकाप्यारकानाम
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एकबार किसीकाथसेकहानकमार को बड़ौदा जाना पडा.
(समय व्यतीत (करने के लिए नाटकही देवाजाय.
INIRL
नAT
दा
GAया महासत
नाटक के एक प्रसंग में अनुसूया अपने | बेटे को झूला में मुलाती हुई कहती है...
इस प्रसंग का कहान पर विशेष
प्रभाव पड़ा.
बेटा तूं शुद्ध "है, बुद्ध है,
कितने प्रेरणादायक शब्द
निर्विकल्प है,
उदासीन है..
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AUDE
भावनगर में-बलकव।। भरुंच में-'मीराबाई' तथा - भर्तहरि'
नाटक देखा,
इनका प्रभाव कहान के मन
पर पड़ा.
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पालजमें. जब कहान 19 वर्ष के थे.
स घोडी के नीचे तो अचार की बर्नी रखी है.
04
-
(बहत दिनों से) आम का अचार) नहीं खाया,आज तो अचार के साथ) (ही भोजनकरु
009
अरे,यहक्या ? इसमें इतो छोटे-छोटे जीव दिखाई दे रहे हैं!
००
TAITARAN
ओह! यदि बिना (देखे खा लेता तो...
अब मैं अचार कभी नहीं खाऊंगा, आज से हीजीवन
पर्यन्त के लिये इसका त्याग करता है।
SEE
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दकान के लिए माल खरीदने कहानकुमार हम यह पाप का काम नहीं कर सकते तुम कीबम्बईजाना पड़ता था. एकबारजब वे
आआतीताराम
वापस निकाललो. माललदवा रहे थे
।
HE
(10)
यह क्या किया!
बाबूजी,इस सामान के साथ मैंने एकपेटी अधिकरख दी है मेरा ईनाम?
| टिकट चेकर ने प्रलोभन दिया गया टिकटन लिया करेंटिकटके आधे पैसे मुद दिया)
में आपको गेट के बाहर यूंही करें.हमदोनो खुश. निकाल दिया करुगा,
ऐसी बात आप (मझसे फिर कभीन
कहियेगा.
दिन रात पाप कर्म होते देख कर एक धनी परिवार नहीं खुशाल भैया) कहान दिन रात कहान का मन विरक्त होनेलगा से तुम्हारी शादी में शादी नहीं साधुओं की संगति FFFFICकहान,दकाने का प्रस्ताव आया करूंगा.
में रत रहने लगे. FE में तुम्हारी Eरुचिकमहो
गयी है.
TUDHARY
AIMERIALILNLINE
ARRIOR
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कहान का अधिक समय धार्मिक सत्य की खोज और अतीन्द्रिय / मैं निश्चय कर चुका ग्रन्थों के अध्ययन व साधुसेवा में|| आनंद की प्राति की तडप में | अब तो काठियावाड़, जीतता।लोग उन्हें 'भगतजी' || उन्होने दीक्षालेने का निर्णय गुजरात, मारवाड़में ___ कहने लगे. म किया। भाई ने समझाया ,
गुरु की खोज करेगा
कुछ भी करो रहम नहीं रोकेंगे,पर दीक्षा मतलोकहान
[वि.सं. 1970 में मगसिर सुदी 9 रविवारको स्थानकवासी जैन साधु श्री हीराचन्द जी महाराज से दीक्षा | ले ली
उमराला में हाथी पर बैठते समय मेरा) धूम-धाम से दीक्षा-वस्त्र फट गया, ) शोभायात्रा / शायद वस्त्रसहित साधु) निकली. होना ठीक नहीं,
स्वामी जी ने चार वर्ष में ही श्वेताम्बर ग्रन्थे । प्रसिद्ध श्वेताम्बर ग्रन्थ भगवती सूत्र | का गहन अध्ययन कर लिया.
का तो आपने 17 बार अध्ययन किया.
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कानजी स्वामी की आत्मार्थिता,गहन। अध्ययन तथा कठोर आचरण कीचच समस्त काठियावाड़ में होने लगी.
कानजी स्वाध्याय|| उनसे वार्तालाप कर में मग्न रहतेथे
भी गौरख अनुभव करते थे.
स्थानकवासी, श्वेताम्बरसमाज तथा समस्त साधुवर्ग में उनकी प्रतिष्ठाहीगई. साथ साधुओं से चर्चा-वाती में भी केवली भगवान ने एक दिन आत्म-साधना कानजी स्वामी का दृष्टिकोण सत्यकी/पुरुषार्थी के अनन्त भव) के लिये मिला यह | शोधपरक होता था.
देखे ही नहीं जो पुरुषार्थ (बहुमूल्य जीवन पात्र चाहे जितना भी कठोर आचरण करो करता है उसके अनन्त
रंगने और कपडेयोने परन्तु यदि भगवान ने अपने ज्ञान में भव होते ही नहीं.
में व्यर्थ जारहा है. हमारे अनन्त भवदेखे होंगेतो उसमें से
एक भी भव कम नहीं होसकता.
नि००
तुम्हे यह अच्छा नहीं लगता तोवस्त्र-पात्र (रहित गुरु द्वंटलो!
कानजी स्वामी के गुरु श्नी हीराचन्द जी महाराज. कानजी,क्या विचार कर रहे हो?
महाराज,इनवस्त्र-पात्र के कार्यों में समय गंवाना.
मुझे अच्छा नहीं लगता है।
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श्रीकानजी स्वामी ने बडाला.सं०-1971 चूड़ा-सं-1978 विभिन्न स्थानों पर मूलजीभाई, शायद भविष्य आपके कहे अनुसार यदि चातुर्मास तथा विहार मैने स्वप्न में में आपकी सब करने लगे तो सबका कर धर्म प्रचार किया.
पूरा आकाश/ प्रेरणा से किसी सब करने लगे तो सबका शास्त्रों से आगममंदिर का काम कौन करेगा? भरा देखा, निर्माण होगा,
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एक करोड़पतियह नहीं सोचता कि सब करोड़पति बनजायेंगे तो बर्तन कौन साफ करेगा.
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जामनगर .स.-1978.यह ग्रन्थ क्या मिला उनका सारा||समय समय पर दामोदर सेठ प्रदत्त
जीवन समयसार मय होगया . श्रीकानजीस्वामी दि आचार्य कुन्दकुन्दपायहता अशगुरहान
अपने विचार प्रकट
शास्त्रहै. के समयसार व अष्ट
करते रहे।
li- पाहुइग्रन्थको गांव के
7 मैने इस सम्प्रदाय बाहर एक गुफा में एक
में जन्म लिया है। माह तक पढ़ते रहे.
इसलिये इसमें मेरी सच्ची श्रद्धाहो ऐसा
नहीं है.
आत्म कल्याण के लिए अधिक ज्ञान नहीं वरन् सच्ची श्रद्धा आवश्यक
राजकोट ,संवत.1982 आचार्य कल्प पं. टोडरमल जीका मोक्षमार्ग प्रकाशक पढ़ने में तल्लीन रहे. इसका सातवां अधिकार तोइन्हे इतना भाया कि उसकी हाथ से अनुकृति कर ली,
113
ANJALI
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जामनगर
14
भक्ति आदि से धर्म नहीं होता, (शुभ भाव होता है.,
000.
Ma
रायपुर. सं०- 1984
वीर जी ने पूछा.
कर्म के जोर के कारण जीव निगोद में रहा हैन ?
अमरेली. सं0-1986
स्थानक वासी सम्प्रदाय की भरी सभा में प्रसिद्ध दिगम्बरं ग्रन्थ समयसार को पढ़ा.
श्रद्धालु सभा ने उन्हे वाचन करने से नहीं रोका.
राजकोट. सं०-1990.
ZZANA
| बिछिया सं0 1987 अग्रज खुशाल भाई से
कहा.
चातुर्मास के अवसर पर
नहीं, स्वयं की भूल से जीव निगोद में रहा है.
यह मार्ग सच्चा नहीं है, मैं इसमें रहने वाला नहीं. यह • साधुपना भी सच्चा नही
छोड़ने में जल्दीबाजी मत करना.
अब मैं इस स्थानकवासी सम्प्रदाय में नहीं रहूंगा.
'अब मुँह पट्टी छोड़ कर दिगम्बर (जैन धर्म अंगीकार
करने की घोषणा कर देनी चाहिए
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उमराला : स्थानकवासी सम्प्रदाय मुखपट्टी एकबाधा है, के प्रतिष्ठित लोग कानजी स्वामी मैं अपने अन्तरकी से मिले,
REE मान्यतानुसारही स्वामीजी, भलेही आपल्याख्यानों में दिखना चाहताहं. कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थ पढ़ें,परन्तु ।
यह चार अंगुल की मुखयट्टी तो (15) धारण किए रहें..
सम्प्रदाय त्यागने पर रोटियां भी दुर्लभ होजायेंगी महाराज,
इस शरीरको टिकना होगा तो रोटिया मिलेगी। ही,यह सब तो पुण्याधीन है,मुझे तो कुन्दकुन्दाचार्य का मार्गही ग्रहण करना है. मेरा निर्णय अटल है.
खुशाल भाई व भाभी गंगाबैन.|| चैत्र शुक्ल ।3,वि०सं०1991मंगलवार को महावीर
| जयन्ती के शुभ दिन सोनगढ़ में मुखपट्टी का त्यागकर तुम कुन्दकुन्दाचार्यका मार्ग खुशी) भगवान पार्श्वनाथ के चित्र के सामने स्वयं को दिगम्बर) से अपनाओ. मैं जीवन भर । ब्र. अव्रती श्रावक घोषित कर दिया, तुम्हें पालने को तैयारहूं.
KUMLOD
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कान जी स्वामी के सम्प्रदाय त्याग की सूचना आग की तरह सारे सौराष्ट्र व गुजरात में फैलगयी.
BABA...
स्थानकवासी सम्प्रदाय के लोगों ने उन्हें नाना प्रकार के प्रलोभन दिये,डराया,धमकाया परन्तु वे पर्वत की भांति अपने विचारों
पर अडिग रहे. दिगम्बर सम्प्रदाय ग्रहण करने के बाद धीरे धीरे विरोधियों की कषाय सोनगढ़ में.
शांत होने लगी.
आनेलगे
स्कान्त स्थान में टेकड़ी पर स्थित अपने अनन्य अनुयायी के टूटे फूटे मकान में गुरुदेव के दर्शनार्थ अनेक लोग
वे 3 वर्ष तक रहे. | कानजी स्वामी के आचरण व व्यवहार को देखकर तथा उनके अभूतपूर्व प्रवचनों को सुनकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये.
कानजीस्वामीजो कहते है ठीक ही तो कहते है।
गये.
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और इनका आचरण भी (तो अनुसरण करने योग्य है,
IHATTA
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सं.1994 वैशाख बदी8.सोनगढ़ में श्री दिगम्बर जैन || इसके साथ ही श्रीकुन्दकुन्द स्वाध्याय मंदिर का निर्माण हुआ.तथा उसमें समयसार कहान जैन शास्त्रमाला की ग्रन्थ की स्थापना की गयी.
स्थापना हुई व गुजराती भाषा में समयसार ग्रन्थ प्रकाशित | किया गया,
ગ્સમચાર
सं.1995 पौषवदी।3 को स्वामीजी | संवत् 1996 में सिद्ध फागुन सुदी २.सं०1997 में नेशनंजय तीर्थ की यात्राकी. क्षेत्र गिरनारजी की ||सीनगद में सीमंधर भगवान
यात्राकी.
का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ.
Hamarp
रण
स्वामी जी के सानिध्य में होने वाला यह प्रथम पंचकल्याणक था,
JAAAA
शनै: शनै: शिक्षण शिविर का आयोजन, आत्मधर्म - गुजराती व हिन्दी का प्रकाशनहआजो आजमराठी.कबर व तमिल भाषा में भी प्रकाशित होरहा
आत्मघम
आत्मधर्म
मामधमा
ஆதிம
ಆತ್ಮಧರ್ಮ
தர்மம்
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प्रातः एवं दोपहर को जैन ग्रन्थों 18 का आध्यात्मिक प्रवचन...
सोनगढ़ में आत्मार्थियों की भीड़ लगने लगी. सैकड़ों ने तो वहां -स्थायी निवास ही बना लिया..
DO
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BACOMKS
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.AA युवा वर्ग की रुचि आध्यात्म में जागृत करने के लिए सं० 1997 से प्रतिवर्ष जुलाई माह में 20 दिन की शिक्षण कक्षाएं आयोजित होने लगी.
रात्रि को तत्व चर्चा. कानजी स्वामी का यह नियम जीवन पर्यन्त रहा.
लोग कानजी स्वामी को गुरुदेव कहने लगे. उस समय हजारों श्वेताम्बरों ने गुरुदेव कानजी से प्रभावित होकर दिंगम्बर जैन धर्म स्वीकार कर लिया.
दानवीर सर सेठ हुकम चन्द जी जैन (इन्दौर) बैशाख वदी 6 सं० 2001 को न्यायालंकार पं. बंशीधर जी आदि विद्वानों के साथ सोनगढ पधारे
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सेठ हुकमचन्द ने स्वामी जीका सं. 2002 मगसर सुदी ।० को कुन्द प्रवचन सुना, तत्व चर्चा की. कुन्द प्रवचन मण्डप का शिलान्यास प्रभावित होकर उन्होने 25
किया गया. यह सं. 2003 में बन कर हजार रुपये प्रदान किये .
तैयार हुआ।
उदद्याटन सर सेठ हुकम चन्द मे किया तथा 35 हजार रुपये और प्रदान किये ।
इसी वर्ष 'श्री भारत वर्षीय दि.जैन विदृत्वरिषद'का तृतीय वार्षिक अधिवेशन सोन गढ़ में हुआ.
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विद्वत्परिषद के अध्यक्ष श्री पं० यहां पर परिषद का अधिवेशन करने से कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री हमसबको महाराजश्री के पास से आध्यात्म ने अपने प्रवचन में कहा- काबहुत लाभ मिलाहै .
PUP-पारगम्पोम्पाUTUUR
सामागमा
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सोनगढ़-बैशाख सुदी-2,सं. 2004 देश के कोने-कोने सेलोगों ने आकर पू.गुरु
आज पू.गुरुदेव श्रीकानजीस्वामीकी देव श्रीकीजन्म-जयन्तीमनाइतथा उनका 59 वीं जन्मजयन्ती पहलीबार विशेष
| उपकार मानतेहुए उनकेदीचीयुकीकामना की 20 उत्साह पूर्वक मनाई जायेगी.
पूज्य गुरुदेव शतायुहो.
MIN आयोजित सभा में पू. गुरुदेव श्री ने उद्गार व्यक्त करतेहुएकहा
अरे,यह मनुष्य जीवन और उसमें भी सर्वज्ञकाजैनधर्म तथा सर्वज्ञका यह मार्ग मिला, फिर भी अभी तकतू सच्चे देव के स्वरूप को न पहचानेतो तेरा उद्धार कैसे होगा उद्धार का ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है. इसलिए तू तत्व निर्णय वसम्यग्दर्शन का
प्रयत्न कर.
Sum
अनेक भाईबहनों ने गुरुदेव श्रीसे ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया,
ब्रह्मचर्यव्रतकीटों का ताजहै। आपलोग अच्छी तरह सोचलो,
हम सबने सोच लिया है. ब्रह्मचर्य व्रत धारणकर हम यहीं आपके समागम में रहना चाहते है।
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२६
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ज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी आपका वीतरागनग्न दिगम्बर जिनमुद्रा कसदपदेशों से अपूर्व धर्म प्रभावना के प्रति अतिशय बहमान देखकर हम' होने लगी। बड़ी संख्या में लोग
भी दिगम्बर जिन मन्दिर का निर्माण सोनगढ़ आते और उनके आध्यात्म
कार्य प्रारंभ कर रहे है, रससे ओतप्रोत प्रवचन सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते।गुजरात प्रान्त में जहां दिगम्बर जैनों का अभाव ... सा था,वहां भी दिगम्बर जैन मंदिरों miltamivara N/Ayou aurya-TRA के निर्माण एवं पञ्चकल्याणकों का तांता लग गया।
HINDI
।
हमारे यहाँ मान्दिर का निर्माण कार्य ता समाप्त भी होचुका है. अब । हम दिगम्बर जैन पनकल्याणक महोत्सव करना चाहते हैं. हमारी सम्पूर्ण समाज की ओर से पूज्य गुरुदेव श्री से हमारे यहाँ पधारने
का अनुरोध करना है..
शनै: शनै: संवत् 2005 में वीहिया हमारे वलाठी में, 2006 में राजकोट में, 2009 यहां भी./ में सोनगढ़ में, संवत् 2010 में बांकानेर,
मोरवी और पोरबन्दर में जिन बिम्ब
पंचकल्याणक महोत्सव के आयोजन हमारे किये गये। यहांभी.
UM.
(अरे यहां यह भीड़ कैसी?तम्हे पता नहीं, पूज्य कानजी (एकहमें भी देना.
स्वामी के आध्यात्मिक प्रवचनों का गुजराती भाषा में दैनिक पत्र
श्री अमृत आईकेसंपादकत्व में EAसदगुरु प्रवचन प्रसाद 'केनामसेस्क हमें भीदो,
भादों सुदी 5 से निकलने लगाहै.
LALLAININDIAOMMITTHITLAMOUChtaminh
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123 संवत-2008. पूज्य स्वामीजी के प्रवचनों से प्रभावित होकर कुछ आत्मार्थी बहने भाउनब्रह्मचर्यधारण कर वहाँ स्थायी रूप से रहने लगीं। जिनमें पूज्य श्री चम्पावन-व | शान्ताबेन प्रमुख थाप ज्य गरुदेव श्री औरRHWटन बहनों के आवास व पूज्य श्री चम्पाबेन
की समुचित व्यवस्था Sa शान्ताबेन के सानिध्य
होनी चाहिए त में रहकर होजोवास्तविक सुखका मार्ग मिला है,वह भौतिकता की चकाचौथ में कही?
एक दिन गुरुदेव श्री ने कहा
RAL लाडनू निवासी सेठ बच्छ राजजी.संवत 2008 को श्री गोगीदेवी दि. जैन श्राविका गंगवाल ने कहा
ब्रह्मचर्याश्रम बन कर तैयार होगया , जिसका बहनों के आवास
उदघाटन माघ सुदी 5 को समारोह पूर्वक की व्यवस्था मैं करूंगा.
न सम्पन्न हुआ..
UNOVA5प पूराण
1XCS
/गंगवाल जीने आश्रमका भवन/सुना है इसे बनवाने तो बहुत सुन्दर बनवाया है,
(में सवालाख रुपये लग गये है:
इस भवन में वर्तमान में भी आत्मार्थी बहने आत्मसाधनारत है और आज इसेबनवाने में दस लाख से भी अधिक रुपया लगेगा,
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ह गुरुदेव श्री अनेक सं० 2017 अब हमें उत्तर भारत के समस्त)सं. 2012] साधर्मीजनों के साथ सिद् क्षेत्र तीर्थो की वंदना करने चलना श्री गिरनारजी की यात्रा के
चाहिये, लिये निकले.
हां, हां क्यों नहीं गुरुदेव श्री हमलोग
भी साथ चलेंगे,
AMIN
कश्मीर
मंगल तीर्थ यात्रा
देखते ही देखते हजारों लोग यात्रा में सम्मिलित होगये,
हस्तिनापुरे दिल्ली
वाराणसी.
>अहमदाबाद
राजगृहारमोद
गिरनार मोगद
का
उज्जैन
शिखर
मागीतुंगी
बंबई
तीर्थयात्रा संघ की सम्पूर्ण व्यवस्था श्री नेमीचन्दजी पाटनी ने की ।
अनेक स्थानों पर पू. स्वामीजीका भव्य स्वागत किया गया,
श्री कानजी स्वामी
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तीर्थयात्रा के समय अभी
अमय अनेक स्थानों पर पू०स्वामीजी रागभाव में धर्म नहीं है, शाकानजी स्वामी | के आध्यात्मिक प्रवचन हुए।
शुभराग भीधर्म नहीं है। जीकुछ कहरहे| आत्मज्ञान बिना यहसब है,वहसब मुक्ति के मार्ग में
आगम विरुद्ध [241
कार्यकारी नहीं है,
मा
SHANI
DI
नहीं, स्वामी.जी आगमानुसार ही कहते है।
हिममात्र विरोध के लियेही विरोध क्यों करें हमें शास्त्राभ्यासकर ही कुछ कहना चाहिए।
अरे यह क्या कानजी स्वामी जोकुद कहते है वहतो जिनवाणी की ही बात कहते है।
उन्होने हम पर अनन्त उपकार किया है. हमने व्यर्थ ही उनका
विरोध किया.
शंकाल लोगों को पश्चाताप हआ। उन्होने जाकर स्वामीजी से क्षमा
मागी.
यह विरोध तुमने नहीं, तुम्हारे अंदर के कषाय भावने किया है तुम्हारा
कोई दोष नहीं।
हमने तो इन शास्त्रों को आजतक पढ़ा हीनहीं. आपके लिये हमने जाकुछ कहा, उसके लिए हम
शर्मिन्दा है',
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सिरोही (राज.), में शिवगंजके निकट | 125तोविरोधी पक्ष उपद्रवपरउलारूया जावाल गांव में एक पक्षस्वामीजी के स्वागतकी तैयारी कर रहा था.....
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स्वामी जीके निवास
स्थान पर
स्वामी जी वापसजाओ।
किवाड़तोड़दो)
स्वामीजीस्वयं किवाड | रवालकर बाहर आएगा
परस्परमेंद्वेषमत कशाहमंता चले। जारोंगे परन्तु तुम्हारा द्वेषकायमरहजारगा,
स्वामीजीससंघआबूकी और प्रस्यानकर गये।
विरोधी पश्चातापकी आग में जलने लगे।
नवीना
हमने उसमहामानव को समझने में भूलकी।
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126) कानजी-स्वामी के प्रस्थान के बाद नागरिकों समस्त 36 जाति के लगभग 100 व्यक्तियों ने में बड़ी ग्लानि पैदा हुई।
प्रस्थान किया। वह आत्मयोगी स्वामीजी को पुन: जावाल में त्यागी महात्मा थे। लायाजाय और उनके अमृतरूपी
वचनों का पान किया जाए।
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गुरुदेव जनता की प्रार्थना स्वीकार कर ली। 24 अप्रैल '57कोजावाल में भव्य स्वागत हुआ ठीक है, मैचलंगा।
नजा
कानजी स्वामीने आत्मधर्म के विषयमें उपदेश दिया।
स्वामी जी के साथ आए यात्रियों को श्रीफल वरुपर भेंट किए गए।
जावाल से मंगलमय प्रस्थान।
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कानजी स्वामी लगभग 2000 भक्तों के साथ उत्तर । आपके साथ बसों और 30कारों का लम्बा भारत के सम्पूर्ण जैन तीर्थो कीयात्राकरते हुए फाल्गुन काफिला था। |27शुक्ला सप्तमी सं. 2013 को तीर्थराज सम्मेद |
KESH शिखर पधारे। उन्होंने बड़े भक्ति भाव से क्षेत्र
की वंदना की।
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मधुवन में प्रतिदिन आपके तात्विक प्रवचन वहां आपका क्ष गणेश प्रसाद जी वर्णी से प्रथम होते थे।
बार साक्षात्कार हआ।आप अच्छे विचारक कुछ लोगों के मन में शंकाएं घर us on
व्यक्ति है । दिगम्बर धर्म में कर गई थीं वे समाधान हेतु स्वामी
आपकी दृढ आस्था है। जी से मिले।
शंकाओं का निवारण तो होना ही चाहिए।
|स्वामीजी ने अपने प्रवचन में कहा।
मरण से बचना है तो उसका उपाय संयम (है और संयम चैतन्य मूर्ति आत्मा की
पहचान बिना प्रकट नहीं होता, इसलिये आत्मा) को पहचानो... वही एक शरण है।
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128 व्याख्यान के अंत में इन्दौर निवासी पं०बंशीधरजी /...वही इनकानजी स्वामी की वाणी में हम
न्यायालंकार ने अपने उदगार प्रकट करते सबको आज सुनने को मिल रहा है। श्रीकुन्दहुए कहा हमारेतीर्थकरो और आज कुन्दाचार्य और श्री अमृतचन्द्राचार्य के बाद ने सच्चे दिगम्बर जैनधर्म को अर्थात मोक्ष ।
समयसार के यथार्थ रहस्य को जानने और (मार्गको प्रकाशित करनेवालाजी उपदेश
समझाने वाले श्री कानजी स्वामी ही है। दिया था...
उपस्थितजन समुदायने स्वामीजी के प्रवचन | एक बार कुछ लोग 108 चारित्र चक्रवर्ती की मुक्त कंठ से सराहना की।
आचार्य शांतिसागरजी के पास गए और कहने लगे
महाराज, कानजी स्वामी का आजकल बड़ा प्रचार हो
रहा है...
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(उनके प्रवचनोंने समाज में खूब धूममचा रखी है। || कुछ बुजुर्गो ने सुझाव दिया।
समयसार में जो लिखा वेतो केवल समयसारही/आपकानजी-स्वामी) ( है वही वेकहते हैमैं भी पढते है और पाप-पुण्य ।
का निषेध क्यों
नहीं करते है? को हेयबताते है।
समयसार पढ़ कर वहीकहता अत: निषेध करना ठीक नहीं।
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सं. 2020, बैशाख सुदी 2 को बम्बई में पू.कानजीस्वामी की हीरक जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया।
अध्यक्षताश्री यू.एन.ढेबर (तत्कालीन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीलालबहादुर शास्त्री कांग्रेस अध्यक्ष) ने की।
ने अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया।
जो मार्ग अहिंसा और शांति का ,चरित्र और नैतिकताका आप दिखाते है, उस पर....
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..यदि हमचलेंगे तो हमारा भी भला) (होगा, देश का भी भला होगा।।
मध्य प्रदेश के मंत्री श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल ने कहा। आप वास्तव में
मानव समाज केलिए प्रकाश-पुंज है।
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जयपुर की सभा में
जयपुर में पंडित टोडरमल जी ने अमर साहित्य) पं. चैनसुखदासजीन्यायतीर्थ ।। की रचना की। उनका स्मारक होना चाहिए।
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30. सेठ पूरनचन्द गोदिका ने सहर्ष एक विशाल भवन का निर्माण कराया। पण्डित टोडरमल स्मारक भवन ।
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मार्च 1967 में कानजी स्वामी ने इसका उद्घाटन किया।
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31|| श्रीकानजी स्वामी के अनन्य शिष्यों में प्रमुख
पं. फूलचन्द्र शास्त्री
पं.बाबू भाई मेहता श्री लालचन्द भाई
खीमचन्द भाई
श्रीयुगल जैन
डॉ०हकमचंद भारिल्ल भी नेमीचन्दजी पाटनी इन सभीनेजैनधर्म की भावना में
महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पं० बाबूभाई मेहताने भगवान महावीरके । इनके सदप्रयासों से 13 मार्च,
25 सौवें निर्वाण वर्ष में धर्म चक्र का 1976 को जैनतीर्थो की सुरक्षा प्रवर्तन देश भर में किया।इससे जैनधर्म तथा साहित्य प्रकाशन को गति का अभूतपूर्व प्रचार हुआ।
देने के उद्देश्य से श्री कुन्दकुन्द कहान दि जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट
की स्थापना हुई।
धर्मचक्र इसके अन्तर्गत जयपुर में श्री टोडरमल सिद्धांत महाविद्यालय भी संचालित है। इसके माध्यमसे प्रतिवर्ष शास्त्री, आचार्य की डिग्री प्राप्त विद्वान तैयार होकर जैन समाज की सेवा कर रहे है।
साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में भी कुन्दकुन्द कहान दि. जैन तीर्थ सुरक्षाट्रस्ट अग्रणी है।
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1 मई, 1976, बम्बई स्वामी जी से आत्मधर्म के सम्पादक डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ने साक्षात्कार किया।
हथेली में पसीना आने से शास्त्र के पृष्ठ खराब न हों इसलिए यह छोटी सी लकड़ी रखता हूं। यह जादू की नहीं है।
आप के प्रवचनों से लोग प्रभावित क्यों हो जाते हैं?
सुना है, आपके पास कोई जादू की
लकड़ी का चमत्कार है? जिस पर फेर देते हैं वह आपका भक्त हो जाता है। सम्पन्न हो जाता है।
भ्रमवश कोई एक बार इसे चुरा भी ले गया था।
हमारे पास वीतराग सर्वज्ञ प्रभु की बात है, वही कहते हैं। प्रभावित होने वाले अपनी पात्रता से प्रभावित होते हैं ।।
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133 सितम्बर-1977
रात्रिचची (स्वामीजी,सम्यक नियतिवाद)
का क्या अर्थ है?
जिस पदार्थ का जिस समय में, जिस क्षेत्रमें,जिस) निमित्त से जैसा होना है वैसा ही होगा। उसमें किंचित भी फेरफार करने में कोई
समर्थ नहीं है।
/ऐसा ज्ञान में निर्णयकरना सम्यक नियतिवाद है और ऐसे निर्णय में स्वभाव की तरफ का अनंत पुरुषार्थ आ जाता है।
सुनाहै ,आचार्यों ने सोनगढ़ का बहिष्कार कर दिया है। हम सभी को अजैन घोषित कर दिया है।
क्या हम किसी के बनाने से दिगम्बर जैन)। हम अपनी शृद्वासे दिगम्बर जैनबने है। बने थे,जो उनके कहनेसे अजैन । हमारी श्रृद्धा किसी के आदेशों की मुहताज होजाएंगे?
नहीं है।
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34. लोग यह भीकहते
धन प्राप्ति है कि आपके प्रवचन सुननेसे)
सम्पन्नता आती है।
।। (महत्व की बात तो आत्मा का)
अनुभव है।
आपकोलोग गुरुदेव / मुझसे लोग अध्यात्म सीखते है।) क्यों कहते हैं ? सो गुरुदेव कहते है।
| दिनांक-27-12-77 'आत्मधर्म के / निन्दा तो हम किसी की भी नहीं करते फिर मुनिराजों सं.डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल फिर की निन्दा करने का प्रश्न हीनहीं है।शुद्धोपयोग की स्वामीजी से मिले।
भूमिका में भूलते हुए दिगम्बर पूज्य मुनिराज तो सुना है, आप मुनिराजों को नहीं चलते फिरते सिद्ध है। हमतो उनके दासानुदास है। मानते। उनकी निन्दा करते है ? उनकी चरण-रजलेकर कौन दिगम्बर जैन
अपने को भाग्य शाली नहीं मानेगा?
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35 सन् - 1979 में नैरोबी (अफ्रीका) में पूज्य कानजी स्वामी की प्रभावना एवं मंगल उपदेश से जैन मंदिर का निर्माण हुआ। आप अपने शिष्यों सहित पंचकल्याणक हेतु नैरोबी पधारे।
नैरोबी में स्वामी जी का उपदेश ।
इतिहास में पहली बार 28 दिसम्बर 1979 को वहां पंचकल्याणक विधि उल्लास पूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुई।
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इस प्रकार 91 वर्ष की अवस्था तक आपने दिगम्बर जैन धर्म का डंका
बजाया।
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36] 28 नवम्बर 1980. संध्या 7 बजकर 10 मिनट पर बम्बई में पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने आत्म निमग्न दशा में देह का परित्याग किया।
बम्बईके नीलाम्बरके विशाल मैदान में अंतिम दर्शनों के लिए लोगों का तांतालग गया।
पार्थिव शरीर को वायुयान से सोनगढलाया गया। 30 नवम्बरको विशाल शवयात्रा निकली।
भारत वर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष पं.नाथूलालजीसहितासरी ने शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार किया।
H ierant Patni अंतिम दर्शन
JHALRAPATAN सोनगढ में श्रद्धांजलि सभा में संहितासूरि पं० नाथूलालजी शास्त्री ने कहा-"मैं 35 वर्ष से पू० गुरुदेव के सम्पर्क में रहा। ऐसा अपूर्व पराक्रमशाली व्यक्तित्व हमने नदेखा,नसुना। सैकड़ों-हजारों हीनहीं लाखों व्यक्ति आपके तत्व से प्रभावित थे।
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स्व० पूज्य गुरुदेवश्री कानजी स्वामी के प्रति समयसार द्रव्यानुयोग में रमते-रमतेआप स्वयं प्रथमानुयोग बने गए हमारे । नयचक्रों के सिद्धान्तों में जमते-जमतेआप स्वयं दृष्टान्तों में छन गए हमारे ।।
आप सरल थे. सनय सार तो बहुत कठिन है। उसको पढ़ने के पहले तो हमें आपको पढ़ना होगा ॥ जीवन का इतिहास आपको चूकि पुराणों से मिलता हैइसीलिए तो हमें सरल से, कावन धीर अब बढ़ना होगा ॥ आप स्वयं चरेषणानुयोग के युगनायक थे। निग्रंथों के, सद्ग्रंथों कै, गपाधर से गायक थे। रवरी कसौटी होती है करणानुयोग की। उसने सिद्ध किया लघुनन्दन, चौथे के लायक थे ॥ Vikrant Patni
- फूलचन्द 'पुष्पेन्दु', खुरई JHALRAPATAN
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________________ संवत् 2015 पौषमाहमें बम्बई में सीमंधर जिनालय का पंचकल्यायक महोत्सव सं.2015 माघ सुदी दक्षिण भारत में जैन तीर्थों की यात्रा बसों व०कारों द्वारा 24 दिसम्बर CU६को. सं.2015 वैशाख सुदीको फतेपुर में पू. स्वामीजीकी 70वीजन्मजयन्ती-उल्लास पूर्वक मनाई गई। रोपी सं02020 में राजकोट में समवशरण मंदिर तथा मानस्तम्भ का शिलान्यास तथा बाटोद में वेदी प्रतिष्ठा सं० 2016 पौष माह में बडीया गतपुर, गोंडल में वेदी प्रतिष्ठा प्रकल्पाम सं02020 में दक्षिण भारत के जैन तीर्थ क्षेत्रों की दूसरी बार यात्रा सं० 2016 कार्तिक माह में 'सुवर्णसन्देश साप्ताहिक पत्रका प्रकाशन प्रारंभ सम्पादक - ब्रहरिलाल सं. 2023 में साह शांहिसार। के कर कमलों बाआगम मंसिर उघाटन सं० 2017 में सावरकुण्डला में वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव स.२०२३ जमपुर में पं. टोडरमल स्मारक भवन का उराष्टक सं.2019 भाद्रपद माह में कुमारी बहनों को ब्रह्मचर्य व्रत दिया तथा मनफूला देवी स्वाध्याय भवन का उदघाटन सं०2017 जामनगर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सं० 2019 वैशाख-जोरावर नगरमे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दहे. गांव में वेदी प्रतिष्ठा अहमदाबाद में- नूतन जिन मंदिर का शिलान्यास। सं० 2017 में लगभग / 1200 श्रद्धालुओं के साथ गिरनार जी सिद्ध क्षेत्र की यात्रा की मार्गशीर्ष कृष्ण वि.सं. 2620o किन