SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहान का अधिक समय धार्मिक सत्य की खोज और अतीन्द्रिय / मैं निश्चय कर चुका ग्रन्थों के अध्ययन व साधुसेवा में|| आनंद की प्राति की तडप में | अब तो काठियावाड़, जीतता।लोग उन्हें 'भगतजी' || उन्होने दीक्षालेने का निर्णय गुजरात, मारवाड़में ___ कहने लगे. म किया। भाई ने समझाया , गुरु की खोज करेगा कुछ भी करो रहम नहीं रोकेंगे,पर दीक्षा मतलोकहान [वि.सं. 1970 में मगसिर सुदी 9 रविवारको स्थानकवासी जैन साधु श्री हीराचन्द जी महाराज से दीक्षा | ले ली उमराला में हाथी पर बैठते समय मेरा) धूम-धाम से दीक्षा-वस्त्र फट गया, ) शोभायात्रा / शायद वस्त्रसहित साधु) निकली. होना ठीक नहीं, स्वामी जी ने चार वर्ष में ही श्वेताम्बर ग्रन्थे । प्रसिद्ध श्वेताम्बर ग्रन्थ भगवती सूत्र | का गहन अध्ययन कर लिया. का तो आपने 17 बार अध्ययन किया.
SR No.033208
Book TitleKahan Katha Mahan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherBahubali Prakashan
Publication Year2000
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy