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________________ दकान के लिए माल खरीदने कहानकुमार हम यह पाप का काम नहीं कर सकते तुम कीबम्बईजाना पड़ता था. एकबारजब वे आआतीताराम वापस निकाललो. माललदवा रहे थे । HE (10) यह क्या किया! बाबूजी,इस सामान के साथ मैंने एकपेटी अधिकरख दी है मेरा ईनाम? | टिकट चेकर ने प्रलोभन दिया गया टिकटन लिया करेंटिकटके आधे पैसे मुद दिया) में आपको गेट के बाहर यूंही करें.हमदोनो खुश. निकाल दिया करुगा, ऐसी बात आप (मझसे फिर कभीन कहियेगा. दिन रात पाप कर्म होते देख कर एक धनी परिवार नहीं खुशाल भैया) कहान दिन रात कहान का मन विरक्त होनेलगा से तुम्हारी शादी में शादी नहीं साधुओं की संगति FFFFICकहान,दकाने का प्रस्ताव आया करूंगा. में रत रहने लगे. FE में तुम्हारी Eरुचिकमहो गयी है. TUDHARY AIMERIALILNLINE ARRIOR
SR No.033208
Book TitleKahan Katha Mahan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherBahubali Prakashan
Publication Year2000
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size32 MB
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