Book Title: Kahan Katha Mahan Katha
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Bahubali Prakashan

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Page 30
________________ 128 व्याख्यान के अंत में इन्दौर निवासी पं०बंशीधरजी /...वही इनकानजी स्वामी की वाणी में हम न्यायालंकार ने अपने उदगार प्रकट करते सबको आज सुनने को मिल रहा है। श्रीकुन्दहुए कहा हमारेतीर्थकरो और आज कुन्दाचार्य और श्री अमृतचन्द्राचार्य के बाद ने सच्चे दिगम्बर जैनधर्म को अर्थात मोक्ष । समयसार के यथार्थ रहस्य को जानने और (मार्गको प्रकाशित करनेवालाजी उपदेश समझाने वाले श्री कानजी स्वामी ही है। दिया था... उपस्थितजन समुदायने स्वामीजी के प्रवचन | एक बार कुछ लोग 108 चारित्र चक्रवर्ती की मुक्त कंठ से सराहना की। आचार्य शांतिसागरजी के पास गए और कहने लगे महाराज, कानजी स्वामी का आजकल बड़ा प्रचार हो रहा है... E (उनके प्रवचनोंने समाज में खूब धूममचा रखी है। || कुछ बुजुर्गो ने सुझाव दिया। समयसार में जो लिखा वेतो केवल समयसारही/आपकानजी-स्वामी) ( है वही वेकहते हैमैं भी पढते है और पाप-पुण्य । का निषेध क्यों नहीं करते है? को हेयबताते है। समयसार पढ़ कर वहीकहता अत: निषेध करना ठीक नहीं।

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