Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ चारित्र का ही निरूपण है। उनके परिपार्श्व में उनके साधक-बाधक तत्त्वों का मैंने विस्तार किया है। वि० सं० २००२ में आचार्यश्री का चतुर्मास श्रीडूंगरगढ़ में था। जीव-अजीव का यह विवेचन तैयार था। डॉ० जेठमलजी भंसाली तथा उनके अनेक सहयोगी व्यक्तियों ने इसे धारा और सम्पादन जेठमलजी भंसाली ने किया। इसका प्रथम संस्करण श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, श्रीडूंगरगढ़ से प्रकाशित हुआ। सभी इससे लाभान्वित हुए। इसका दूसरा संस्करण जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने प्रकाशित किया । मुनि सुदर्शन ने इसे अद्योपांत पढ़कर पुनः संपादित किया । तदन्तर धार्मिक परीक्षा में इसका समावेश हुआ और हजारों छात्र-छात्राओं ने इसके माध्यम से जैनधर्म के मूलभूत तथ्यों को समझा। वर्तमान में जैन विश्व भारती इसका प्रकाशन कर रही है। आचार्य महाप्रज्ञ राणावास २ अक्टूबर, १६८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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