Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 7
________________ जैनधर्म और जैन जातिके परम उपकारी श्रीमान् जैनधर्मभूपण, धर्मदिवाकर श्रीब्रह्मचारी शोतलप्रशादजी सम्पादक-"जनमित्र और वीर" 必於公於小小小小小小小小小小小 1 कर कमलों में तुच्छ भेंट यह सादर अर्पण करता हूँ। जैनधर्म के नावक पर यह प्रेम पुष्प सर धरता हूँ॥ प्रेम आपसे बाल बृद्ध, गुण मुग्ध, सभ्य जन करते हैं। धर्म स्वरूप समझ कर.सच्चा सत्य सौख्य यश भरते हैं । हे शांत हृदय ! अरु पूज्यवर कृपया इसे अपनाइये। रकर कमलों में ग्रहण कर सत्य मार्ग दिखलाइये ॥ 1. विनीत “सम्पादक" । RECENCECREEKASKIN

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