Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 10
________________ * जिनवाणी संग्रह * सुर सम्पत्ति प्रधान मुक्ति लक्ष्मी भी होती। सर्व विपत्ति विनाश ज्ञानकी ज्योती होतो ॥ पशु पक्षी नर नारि श्वपच जो धारण करते । शान, मान, धन, धान्य और सुख सम्पति भरते। जीवन्धर थे स्वामि एक जन करुणा धारी। कुत्तेको दे मन्त्र शीघ्र गति भली सुधारी ॥ मंत्र प्रभाव स्वर्गमें जाकर सब सुख पाये। ध्याये जो जन उसे सर्व सुख हों मनचाये ॥४॥ “सतीश" ३ पञ्च परमेष्टीके नाम अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु । ॐ ह्रीं असि आ उ सा । ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ नोट-अ सि आ उ सा नाय पञ्च परमेष्ठोका है। ॐ में पञ्च परमेष्ठोके नाम ही २४ तीर्थङ्करों के नाम गभित हैं। चौविस तीर्थकरोंके नाम ऋषभदेव, २ अजितनाथ. ३ संभवनाथ, ४ अभिनन्दननाथ, ५ सुमति नाथ, ६ पद्मप्रभ, ७ सुपार्श्वनाथः ८चन्द्रप्रभ, ६ पुष्पदन्त, १० शीतलनाथ, ११ श्रेयांशनाथ, १२ वासुपूज्य, १३ विमलनाथ, १४ अनन्तनाथ, १५ धर्मनाथ, १६ शांतिनाथ, १७ कुन्थुनाथ, १८ अरनाथ, १६ मलिनाथ, २० मुनिसुव्रतनाथ, २१ नमिनाथ, २२ नेमिनाथ, २३ पाश्वनाथ, २४ वर्द्धमान।

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