Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 5
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य । बंधुओ! हम आपकी गहरी सहानुभूतिका अनुभव करते हुए सिर्फ तीन हो महिनेमें यह द्वितीयावृत्ति लेकर सेवामें उपस्थित होरहे हैं। हमें स्वप्नमें भी ऐसी आशा नहीं थी कि आप लोग इतना प्रेम दिखावेंगे। सिर्फ २-२॥ महिनेमें प्रथमा। वृत्ति खप गई, यह आनंद की बात है। इस नई आवृत्तिमें हमने । अरहंतपाशा केवली, शिखर महात्म्य, विद्यावतो कृत अनेक पद, संसार दुःख दर्पण, अठारह नाते की कथा आदि और भी बहुतसे आवश्यक विषयोंका समावेश कर दिया है। इससे संग्रह को महत्वता और भी बढ़ जाती है। ____ जिन जिन महाशयोंके प्रकाशित विषयोंका हमने इसमें समा.॥ वेश कर दिया है उन उन महाशयोंके प्रति हम अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं। __श्रीमान् परोपकारी बन्धु बा० छोटेलाल जी जैन एम० आर० ए० एस० ने सदैवकी भांति अपनी शुभ सम्मति द्वारा हमें पूर्ण । सहायता दी है इस महिती कृपाके लिये कृतज्ञ हैं। ___ सम्पादक महाशयोंको भी हम धन्यवाद दिये वगैर नहीं रह सक्त कि जिनने अपना अमूल्य समय दे कर हमें उपकृत किया है। प्रथमावृत्ति की आलोचना जैनमित्र, जैनजगत, परवार बन्धु, खंडेलवाल जैन हितेच्छु आदि प्रसिद्ध पत्रोंने विस्तृत | रूपसे खूब ही उत्तम की थी इस कृपाके लिये भी कार्यालय उनका आभारी है। आशा है आप सज्जन इसी तरह कृपा दृष्टि रखेंगे। दीपावली-चोर सं० २० दीपावली-चोर सं० २४५२६ लीवन्द पन्नालाल,देवरी सागर मिवदक

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