Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi

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Page 6
________________ मूर्ति के द्वारा मूर्तिमान की पूजा का विधान है। प्रकारांतर से यह जीव अहंत की पूजा के बहाने अपने गुणों का ही स्मरण करता है वह 'नम: समयसाराय' का ही अनुकरण करता है। आचार्यों ने थावक की निचली दशा से लेकर मुनि की उच्चदशा पर्यत इस पूजा का विधान किया है। कहीं द्रव्यपूजा की प्रमुखता है तो कहीं भावपूजा की। अतः हमारा कर्तव्य है कि पूजा से लाभ उठाएं। ___ इस दिशा में श्रीमान स्व० ला० रघुवीरसिंह जैन के सुपुत्रों श्री प्रेमचंद जैन, श्री कैलाशचंद जैन व श्री शान्तिस्वरूप जैन 'जैना टाइम इण्डस्ट्रीज' दिल्ली ने एक और प्रयत्न किया है । वे स्वयं तो इस मार्ग में लगे ही हैं-जनसाधारण के लाभ का भी उन्हें सहज ध्यान है । वे सदा ही धार्मिक भावनाओं को मूर्तरूप देने में सावधान रहते हैं। फलतः यह पूजा-पुष्प भी उन्हीं के धार्मिक भावों का मूर्त-रूप है । आशा है यह पुप्प भव्य-जीवों के मार्ग में सहायक होगा और सभी जन इससे लाभ उठाएंगे। पद्मचंद्र शास्त्री एम.ए. वीरसेवा मंदिर, दिल्ली

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