Book Title: Jinabhashita 2009 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 2
________________ स्त्री-जाति की कई विशेषताएँ-2 आचार्य श्री विद्यासागर जी जो अव यानी 'अवगम'-ज्ञानज्योति लाती है, तिमिर-तामसता मिटाकर जीवन को जागृत करती है अबला कहलाती है वह! अथवा, जो पुरुष-चित्त की वृत्ति को विगत की दशाओं और अनागत की आशाओं से पूरी तरह हटाकर 'अब' यानी आगत-वर्तमान में लाती है अबला कहलाती है वह...! बला यानी समस्या संकट है न बला.... सो अबला समस्या-शून्य-समाधान!! अबला के अभाव में सबल पुरुष भी निर्बल बनता है। समस्त संसार ही, फिर, समस्या-समूह सिद्ध होता है, इसलिए स्त्रियों का यह 'अबला' नाम सार्थक है! 'कु' यानी पृथिवी 'मा' यानी लक्ष्मी और 'री' यानी देनेवाली... इससे यह भाव निकलता है कि यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना तब तक रहेगी जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी। यही कारण है कि सन्तों ने इन्हें प्राथमिक मंगल माना है लौकिक सब मंगलों में...! धर्म अर्थ और काम पुरुषार्थों से गृहस्थ जीवन शोभा पाता है। इन पुरुषार्थों के समय प्राय: पुरुष ही पाप का पात्र होता है, वह पाप. पण्य में परिवर्तित हो इसी हेतु स्त्रियाँ प्रत्यन शीला रहती हैं सदा। पुरुष की वासना संयत हो, और पुरुष की उपासना संगत हो, यानी काम पुरुषार्थ निर्दोष हो, बस, इसी प्रयोजनवश वह गर्भ धारण करती है। 'मूकमाटी (पृष्ठ २०३-२०४)' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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