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जिज्ञासा- विधवा स्त्री का रहन-सहन आदि किस प्रकार होना चाहिए, क्या इसका शास्त्रों में कोई वर्णन मिलता है? यदि मिलता हो तो बताएँ?
समाधान- श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित पाण्डव पुराणम् (भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद् प्रकाशन) के पर्व १३, पृष्ठ- २८३ पर इसप्रकार कहा है
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'विधवा स्त्री सभा में कदापि नहीं शोभती है। विधवा स्त्री का आँखों में अंजन लगाना अर्थात् काजल लगाना, सुरमा से आँखे आँजना आदि शृंगारिक कार्य होने से त्याज्य हैं, लज्जाजनक हैं ताम्बूल भाण करना भी उसे वर्ज्य ही है, अलंकार के समान अन्य रंगयुक्त वस्त्रधारण करना भी शोभाजनक नहीं हैं, अर्थात् विधवा स्त्री का अंलकार धारण करना और सुंदर तरह-तरह के चित्र विचित्र वस्त्र धारण करना भी लज्जाजनक है। उसे सफेद वस्त्र धारण कर, भूषण रहित अवस्था में रहना ही शुभ माना गया है। पति मरने पर अथवा गृह त्यागकर निकल जाने से स्त्रियाँ संयम धारण करें। तपश्चरण से वह अपना देह क्षीण करें। श्रावक के षट्कर्मों में अपना समय लगावें स्पर्श आदि विषयों के प्रति गमन करनेवाली इंद्रियाँ शीघ्र क्षीण करें। भोजन, वस्त्र धारण करना, श्रृंगारिक बातें करने का चातुर्य जीवों धन और शरीर के ऊपर स्नेह ये बातें बिना पति के स्त्रियों के लिए शोभापद नहीं हैं ।
समाधान- सर्वावधिज्ञान परमाणु को जानता है या नहीं, इस संबंध में आचार्यों के दो मत प्राप्त होते हैं। तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकारों के अनुसार, सर्वावधि अवधिज्ञान परमाणु को नहीं जानता है, जबकि धवला और गोम्मटसार, जीवकाण्ड के अनुसार सर्वावधि अवधिज्ञान परमाणु को जानता है। इस संबंध में निम्न आगम प्रमाण जानने योग्य हैं
श्री धवला पु. ९/४८ में सर्वावधि का विषय परमाणु कहा गया है । गोम्मटसार जीवकाण्ड में तो एक गाथा ही इस संबंध में इसप्रकार कही गई हैसव्वावहिस्स एक्को परमाणु होदि णिव्वियप्पो सो । गंगामहाणइस पवाहोव्व धुवो हवे हारो ॥ ४१५ ॥
अर्थ- सर्वावधि का विषय एक परमाणु मात्र है, वह निर्विकल्प रूप है। भागहार गंगा महानदी के प्रवाह के समान ध्रुव है।
भावार्थ- यहाँ सर्वावधि का विषय परमाणु कहा गया है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि तत्त्वार्थसूत्र के 'तदनन्तभागे मन:पर्ययस्य' १/२८ के अनुसार जो रूपी द्रव्य सर्वावधिज्ञान का विषय है, उसके अनन्त भाग करने पर उसके एक भाग में मन:पर्ययज्ञान प्रवृत्त होता है, ऐसा कहा जिज्ञासा- क्या सर्वावधि अवधिज्ञान परमाणु को गया है। परन्तु धवला पु. ९ में कहीं पर भी यह नहीं कहा गया, क्योंकि वे सर्वावधिज्ञान का विषय परमाणु स्वीकार करते हैं और धवला ९/६३ तथा ६८ के अनुसार मन:पर्ययज्ञान का विषय स्कन्ध बताया है।
प्रश्नकर्ता - पं. अभयकुमार शास्त्री ।
जानता है या नहीं?
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के अनन्त भेद हैं अतः ये उत्तरोत्तर सूक्ष्म विषय बन जाते हैं ।'
'कार्मण द्रव्य का अनन्तवाँ अन्तिम भाग सर्वावधिज्ञान का विषय है। उसके भी अनन्त भाग करने पर जो अंतिम भाग प्राप्त होता है, वह ऋजुमति मनः पर्ययज्ञान का विषय
ऋजुमति के विषय के अनन्त भाग करने पर जो अन्तिम भाग प्राप्त होता है, वह विपुलमति का विषय है। अनन्त
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भावार्थ- सर्वावधिज्ञान तथा दोनों मन:पर्ययज्ञान उत्तरोत्तर सूक्ष्म स्कन्ध को विषय करते हैं परमाणु को नहीं राजवार्तिक १/ २४ / २ में तथा श्रुतसागरीय तत्वार्थवृत्ति में भी इसीप्रकार कहा है। श्लोकवार्तिक खण्ड ४, पृष्ठ ६६-६८ पर भी कथन प्राप्त होता है। इससे स्पष्ट है कि तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकारों की परम्परा परमाणु को सर्वावधि अवधिज्ञान तथा किसी भी मनः पर्यय ज्ञान द्वारा जानने योग्य नहीं मानती है।
जिज्ञासा - केवली भगवान् के योग होने के कारण प्रकृतिबंध तथा प्रदेशबंध होना ठीक है, परन्तु कषाय न होने से स्थितिबन्ध और अनुभाग बन्ध नहीं होने चाहिए?
समाधान आपका कथन उचित ही है क्योंकि द्रव्यसंग्रह में कहा गया है, 'जोगापयडिपदेसा, ठिदिअणुभागा
१. सर्वार्थसिद्धि १/ २४ की टीका में इस प्रकार कहा कसायदो होंति' अर्थ- योग से प्रकृति और प्रदेशबंध होते हैं तथा स्थितिबंध और अनुभाग बंध कषाय से होते हैं।. परन्तु श्री धवला पुस्तक - १३, पृष्ठ ४९ पर इस संबंध में इसप्रकार कहा गया है- 'जघन्य अनुभाग स्थान के जघन्य स्पर्धक से अनन्तगुणे हीन अनुभाग से युक्त कर्म स्कन्ध बन्ध को प्राप्त होते हैं ऐसा समझकर अनुभाग बन्ध नहीं है, ऐसा कहा है। इसलिए एक समय की स्थितिवाला
अक्टूबर 2009 जिनभाषित 24
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