Book Title: Jinabhashita 2009 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ होते हैं। अविद्या से विद्या की ओर यात्रा शुरू करते हो जाते है । हैं। काव्य हेतुओं (प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास) में व्युत्पत्ति का सम्बन्ध संस्कार (संस्कृति) से है। संस्कार की इस उदात्तभूमि पर सत्त्वोद्रेक होता है। फलतः रसानुभूति होती है। सद्यः परिनिवृत्ति के क्षणों में ही कान्ता सम्मतउपदेश फलित होता है अतएव 'मूकमाटी' । 'सत्त्वोद्रकादखण्डस्व-प्रकाशानन्दचिन्मयः ' है । हिन्दी महाकाव्यों की परम्परा में 'मूकमाटी' परिगणनीय है। इस प्रसंग में 'आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी का प्रयास मूल्यांकन का स्वस्थ और सुन्दर आरम्भ है। दर्शन- काव्य इसलिए काव्य होते हैं कि इनका दर्शन संवेदना से जुड़कर अभिव्यक्त होता है जैनदर्शन का चिन्तन माटी की मूक संवेदना का समसहृदय हृदय के आस्वाद का विषय बन गया है। संवाद योजना की दृष्टि से यह 'मूकमाटी' नाटकीय महाकाव्य का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। चरित्र चित्रण में लेन-देन ( Give and take) की प्रक्रिया का भरपूर निर्वाह है। सार्वत्रिक धरातल पर आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने 'मूकमाटी' के महाकाव्य का अनुशीलन प्रस्तुत किया है। उनकी सम्पादन- कला और भावशक्ति की यह अद्भुत मिसाल है। के 'अग जगमय सब रहित विरागी । प्रेम ते प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥' (मानस १. १८५) यह ठीक है कि समग्र विश्व प्रेम में शरण ले सकता है पर इससे व्यापक और सार्वजनीन तथ्य यह है कि प्रेम में स्वयं ईश्वर उतर आते हैं- 'Heaven itself descend in love' 'गोस्वामी जी विश्वकवि इसलिए हैं कि वे समग्र बिन्दु पर बोलते हैं। विद्यासागर जी ने पृथ्वी की धारणा-शक्ति को अपूर्वता के अनुरूप माटी विविध पर्यायों को इस काव्य में सार्थकता प्रदान है। शाश्वत सत्य को उद्घाटित किया है।' छन्द, अलंकार, भाषा और शैली में एक लय है। काव्य के ये बाह्य तत्त्व भर नहीं हैं। विषय की अन्तरंगता के स्थायी उपकरण हैं । अन्तर्वस्तु से जुड़कर ये लय, शोभा, व्यंजना तथा कथन की भंगिमा को चमत्कृत करते हैं । शैली की भंगिता तो 'मूकमाटी' शीर्षक में प्रतीयमान है 'माटी' तो स्वयं मूक होती है। फिर उसकी मूकता को संवेदना और सम्प्रेषण से सम्पृक्त करना अद्भुत है। तदपि 'कामायनी' आधुनिक हिन्दी काव्यधारा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। की Jain Education International 'मनमुख' से 'गुरुमुख' होना ही साम्मुख्य योग है। यही आचार्याभिमानयोग है । प्रपत्ति का बिन्दु है । गुरु तो ' पूर्वेषामपि गुरु : ' -पुराण पुरुषों का भी गुरु है। गुरु की कृपा से ही व्यक्ति सत्संग का सेवन करता है, सन्त सभा में प्रवेश पाता है । किसी ने इसे 'जीवन का महाकाव्य' (यशपाल जैन) तो किसी ने 'प्रवचन महाकाव्य' (विश्वम्भरनाथ उपाध्याय) कहा है। डॉ. नगेन्द्र इसे 'रूपक महाकाव्य ' कहते हैं। प्रस्तुत में आत्म-निर्माण है और अप्रस्तुत में आत्मा की मुक्ति की साधना की व्यंजना है। ( वही प्रथम खण्ड, पृ. ३४) डॉ. विजयेन्द्र स्नातक 'आध्यात्मिक आधारवाला प्रथम महाकाव्य' कहते हैं। मिट्टी और मिट्टी के मौन को यहाँ वाणी मिली है। श्री अरविन्द की 'सावित्री' और मुनि श्री विद्यासागर की 'मूकमाटी' की आधारभूति अध्यात्म है। डॉ. देवकीनन्दन श्रीवास्तव ने दोनों महाकाव्यों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है न केवल 'सावित्री' में अपितु हिन्दी के भक्तिकाव्य में प्रेम एक दिव्य भाव है। वह ब्रह्माण्ड से भी अधिक व्यापक है। प्रेम में तो ईश्वर स्वयं प्रकट हो गयी है। यही माटी एक बार फिर 'मूकमाटी' में सत् युग और कलि युग को आचार्यश्री बाहरी नहीं, भीतरी घटना मानते हैं । युग-धारण को विचार से जोड़कर चिन्तन को नया आयाम देते हैं । आधुनिक हिन्दी कविता के बहुविध गुण-धर्म विवेच्य कृति में समाहित हैं। दर्शन, धर्म और अध्यात्म का यह काव्य संकलनत्रय है। डॉ० सूर्यप्रकाश दीक्षित 'मूकमाटी' को 'उत्तर आधुनिक साहित्य की अभिनव उपलब्धि' मानते हैं। आचार्य श्री दर्शन से अध्यात्म को वरेण्य सिद्ध करते हैं। अध्यात्म स्वाधीन नयन है और 'दर्शन पराधीन उपनयन' है। डॉ० चक्रवर्ती 'मूकमाटी' को 'काव्य की माटी और माटी का काव्य' स्वीकारते हैं। यहाँ धरती की सार्वभौमिक तस्वीर अंकित है, मात्र कृति नहीं है, विकृति का परिहार है। संस्कृति का जयघोष है। श्रमण चेतना का संवेदनशील काव्य है। नायिका माटी है। अतएव यह नायिकाप्रधान काव्य है। कवि ने नारी को उदात्त चरित्र प्रदान किया है। शुकशास्त्र (श्रीमद् भागवत महापुराण) में बाल कृष्ण ने मिट्टी खाकर उसे अंगीकार किया है। मिट्टी अलंकृत For Private & Personal Use Only अक्टूबर 2009 जिनभाषित 28 www.jainelibrary.org

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