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समाचार गौरेला पेण्ड्ररोड
। में रहता है, अंधकार की तलाश में रहता है। भगवान साधना शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी ने | सदा प्रकाशवान हैं क्योंकि उनके दरबार में अंधेर नहीं पावनभूमि अमरकण्टक में परिश्रम का महत्त्व बताते हुए अंधेरा होता ही नहीं, यहाँ रात-दिन एक समान-सदा कहा कि रागी चिन्ता में रात व्यतीत करता है. वीतरागी | रहते प्रकाशवान। संयम पुरुषार्थ के पास पाप कभी नहीं रात्रि में भी चिन्तन करते हैं। वैराग्य की कथा से भीतर आता। आचार्यश्री ने कहा कि महानगरों में यातायात की आँख खुलते ही व्यथा समाप्त हो जाती है।
व्यवस्थित रखने के लिए वाहनों को बाह्य मार्ग से चलने भारत में प्राचीन काल से नानी, दादी की कथा | का निर्देश दिया जाता है। इन मार्गों से चलनेवाले नगर के माध्यम से ज्ञान और संस्कार की धारा प्रवाहित होती | के भीतर के वैभव से वंचित रह जाते हैं, ऐसे ही बाह्म रही है। बाल्यकाल में इन कथाओं को सनते-सनते नींद | रूप में भटकता प्राणी भीतर के वैभव से अपरिचित आ जाती थी, किन्तु कालान्तर में इन्हे स्मरण करते ही | रह जाता है। अनन्त काल से चक्कर लगा रहा है, किन्तु आँख खुल जाती थी। ज्ञान संस्कार की कथा का क्रम | परिक्रमा कभी पूर्ण नहीं हो रही। ज्ञान पर लोभ की वर्तमान काल में टूटता प्रतीत होता है, परिवार में नानी | परत चढ़ जाती है, तथा जड़ धन के चक्कर में आत्मधन माँ. दादी माँ की स्थिति कैसी है? इससे सभी भलीभाँति | छूट जाता है, आचार्यश्री ने एक पौराणिक कथा के माध्यम परिचित हैं, पूर्वकाल में ये कथाएँ संस्कार की पाठशाला | से ज्ञान की अनुभूति कराते हुए बताया कि दयाधर्म ही थीं। आचार्यश्री ने बताया कि दादी, नानी चली जाती | मूल्यवान सम्पदा है, जिससे अनन्तकालीन दरिद्रता समाप्त हैं, उनके द्वारा कही कथा एक आदर्श बन जाती है। हो जाती है। दादी माँ, नानी माँ की कथा स्मरण कर पौराणिक कथा और आज की कथा में भी अन्तर है। | ज्ञान और संस्कार का बोध हो जाता है. यह जिनवाणी। यग बीत गया. यगान्तर में भी पौराणिक कथा प्रेरणा | दादी माँ के माध्यम से कथा सनी थी. भीतरी आँख दे रही है। सुनते हैं पौराणिक कथा पर भी कछ शोध | खोलने के लिए कथा का प्रभाव होते ही समस्त व्यथा का प्रयत्न हो रहा है। आचार्यश्री ने कहा कि संसार | समाप्त हो जाती है। करोड़ जिह्वा की कथा से व्यथा में किसकी सत्ता है? पृथ्वी पर सत्ता का अधिकार | का अन्त नहीं होता, वैराग्य की एक कथा से सार समझ बतानेवाले कितने आए और कहाँ गए, कोई गणना ही | में आ जाता है। असार संसार की वास्तविकता प्रकट नहीं, वस्तुतः संसार पर सत्ता की सोच ही अनुचित | हो जाती है। है, जिसका विनाश हो वह कैसी सत्ता? अविनश्वर सत्ता
वेदचन्द जैन तो आत्मसत्ता है पर सत्ता का अधिकार रखना चाहते
वर्णी जयन्ती हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हैं, निजसत्ता से सदा दूर हैं। युग के आदि में भी चक्रवर्ती दिनांक ८.९.२००९ को श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, भरत ने सत्ता के लिए अपने भाई बाहबली पर चक्र | वाराणसी के प्रांगण में विद्यालय के संस्थापक परम पूज्य चलाया था, यह छीनाझपटी किसके लिए है? जिसका १०५ गणेश प्रसाद जी वर्णी की १३५ वी जयन्ती परमपूज्य विनाश होना है।
उपाध्याय श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य आचार्य श्री विद्यासागर जी ने पुरुषार्थ का महत्त्व में मनाई गई। बताते हुए कहा है कि परिश्रम करनेवाला दिन रात एक कार्यक्रम का संचालन करते हुए विद्यालय के कर देता है, तात्पर्य है कि परिश्रमी के लिए रात्रि भी | अधिष्ठाता डॉ. फूलचन्द्र जी जैन 'प्रेमी' ने विद्यालय के दिन की भाँति प्रकाशवान होती है, परिश्रम का परिणाम इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया की किन विषम प्रकाशमय होता है, यह समझाते हुए कहा कि पुरुषार्थहीन | परिस्थितियों में वर्णी जी ने इस महाविद्यालय की स्थापना के लिए दिन भी रात्रि के अंधकार समान हो जाता | की। वर्णी जी द्वारा स्थापित इस महाविद्यालय ने हजारों है। रागी चिन्ता में रात बिताता है वीतरागी रात्रि में भी | जैनविद्वानों को जन्म दिया। चिन्तन करते हैं । विषय भोगों में व्यस्त प्राणी अंधकार
सुरेन्द्र कुमार जैन
32 अक्टूबर 2009 जिनभाषित
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