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उक्त दोनों समाचार के प्रमाण हमारे पास हैं जो कोई । बारे में गलत प्रचार करने के अपने रवैये में तबदीली करें। मँगवाना चाहे हम फोटो कॉपी भेज सकते हैं। शासन देवताओं | उन्हें जो करना है करें, पर आचार्यश्री को बदनाम कर न करें, की उपासना के सभी समर्थकों से हमारा यह विनम्र निवेदन | यही प्रार्थना है। है कि ऐसे पुख्ता प्रमाण देखकर वे आ. शांतिसागरजी के |
संपादिका-'धर्ममंगल'
हाथ जोड़कर अभिवादन करें
डॉ. (कु.) आराधना जैन स्वतंत्र जब भी हम अपने किसी परिचित, अधिकारी या | भारतीय संस्कृति तथा अन्य संस्कृतियों में अभिवादन आगन्तुक से मिलते हैं तो हर्षित हो हाथ जोड़कर उसका भी की पद्धतियाँ देखें और तलना करें तो ज्ञात होता है कि हमारी अभिवादन करते हैं। हमारा यह अभिवादन करना शिष्टाचार | संस्कृति की हाथ जोडकर अभिवादन की पद्धति सर्वश्रेष्ठ है। का सूचक तो है ही, हमारी विनय का प्रतीक है। यह सामने | एक कवि ने कहा हैवाले के प्रति खुशी, सम्मान और मित्रता को भी द्योतक । चारमिलेचौसठखिले, मिलेबीस करजोड़। करता है। वर्तमान में हाथ जोड़कर अभिवादन करने की सज्जनसे सज्जन मिले, हर्षित सात करोड़ ॥ परम्परा लुप्त होती जा रही है। उसका स्थान हाथ मिलाने जब भी हम किसी परिचित (साधर्मी) से मिलते हैं और हाय-हलो ने ले लिया है।
तो हमारे दोनों नेत्र साधर्मी के दोनों नेत्रों से मिलकर चार होते यदि हाथ मिलाकर अभिवादन किया जाता है तो | हैं। अनायास ही हमारे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती है। अभिवादक सामने वाले की ओर हाथ बढ़ाता है। ऐसी स्थिति मुस्कुराने पर स्वयं के ३२ दाँत तथा सामने वाले के ३२ दाँत में उसके हाथ का अंगूठा सामने वाले व्यक्ति की ओर होता है | इस तरह कुल ६४ दाँत दिखने लगते हैं। अर्थात् खिल जाते अर्थात् वह उसे अंगूठा दिखाता है। अंगूठा तो बच्चे खेल हैं। दोनों हाथों को श्रीफलाकार जोड़ने पर दस अंगुलियाँ खेल में हारने वाले के प्रति दिखाते हैं और उसे चिढ़ाते हैं। | हमारी और साधर्मी की दस अंगुलियाँ मिलकर बीस हो अभिवादन में हाथ बढ़ाकर अंगूठा दिखाने से सामने वाले | जाती हैं। एक मनुष्य के शरीर में रोमों की संख्या साढ़े तीन का अपमान होता है, सम्मान नहीं। एक बात और है - जब | करोड़ है। अभिवादन करने वाले दोनों व्यक्तियों के शरीर के दो व्यक्ति हाथ मिलाते हैं तो उनके हाथों के मिलने से कैंची | कुल सात करोड़ रोम रोमांचित हो जाते हैं अर्थात् सारे शरीर द्योतक बनती है। कैंची का काम काटने का है जोडने का | में रोमांच उत्पन्न हो जाता है। यह रोमांच अंतस के हर्ष का नहीं। अत: अभिवादन में कैंची के प्रतिरूप का, हाथ मिलाना | सूचक है। अनुचित है। यह भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल है। हाथ जब हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है तो हाथ मिलाते समय हाथ वक्षस्थल के नीचे ही रहते हैं। हाथ नीचे | वक्षस्थल के श्रीवत्स चिन्ह पर रहता है। दोनों हाथों की रहने से ऊर्जा अधोगामी होती है अतः ऊर्जा का हास होता है। अंगुलियाँ आकाश की ओर होती हैं। परिणाम स्वरूप ऊर्जा हाथ मिलाकर अभिवादन मात्र बराबरी वालों में ही होता है, | उर्ध्वगामी बनती है, ऊर्जा का ह्रास नहीं हो पाता। शरीर अतएव छोटे-बड़े हाथ मिलाकर अभिवादन नहीं कर सकते। विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र के अनुसार हाथ जोड़कर विपरीत लिंग वालों में अभिवादन का यह तरीका भारतीय | अभिवादन करने से सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय रहती है। सूर्य स्वर संस्कृति के अनुरूप नहीं है।
| और चन्द्र स्वर दोनों समान चलते हैं । यह अच्छे स्वास्थ्य का इसी तरह हाय-हलो द्वारा अभिवादन करने की पद्धति भी अनुचित है। कारण 'हाय' शब्द दुःख, मातम, शोक का सभी संस्कृतियों की अभिवादन पद्धतियों में भारतीय सूचक है। प्रतिकूलता, आपत्ति या इष्ट वियोग में मुख से | संस्कृति की हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्धति 'हाय' सहज ही निकल जाता है। दुःख सूचक शब्द 'हाय' से | सर्वोत्तम है। इसमें सम्मान-आदर-हर्ष और उत्तम स्वास्थ्य अभिवादन हो ही नहीं सकता। यह 'हाय' अभिवादन का | के जो रहस्य गर्भित हैं वे अन्य अभिवादन प्रक्रिया में नहीं। मजाक उड़ाता है। अत: यह सम्मान/आदरभाव को अभिव्यक्त | अतएव हाथ जोड़कर ही अभिवादन करें। करने की श्रेष्ठ पद्धति नहीं हो सकती।
भगवान् महावीर मार्ग गंजबासौदा (म.प्र.)
अविशवाननकाने की पति | लक्षण हैं।
नवम्बर 2005 जिनभाषित 23
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