Book Title: Jinabhashita 2005 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ प्रभु, तुम मुझसे कह दो कि तुम मुझसे खुश नहीं हो । तुम्हारी नाराजी से डर कर शायद मैं सुधर जाऊँ। मैं तुम बहुत आश्रित होता जा रहा हूँ अकर्मण्यता की सीमा तक । तुम मुझसे साफ-साफ कह दो कि तुम मेरी सहायता बिल्कुल नहीं करोगे । तुम मेरे साथ हो मुझे कैसी भी विपदा से बचा लोगे मेरा यह विश्वास खतरनाक है, यह मुझे कमजोर बनाता है और विधर्मी भी । Jain Education International साफ साफ कह दो प्रभु, तुम मुझे दृढ़ता से बता दो कि जैसा मैं करूँगा वैसा ही भरूँगा । तुम मेरे कवच और कमाण्डो नहीं हो, अपनी रक्षा का दायित्व एक मात्र मुझ पर है । कह दो प्रभु, साफ-साफ कह दो । • सरोज कुमार कुछ ऐसी निर्मम शैली में कह दो कि मैं विश्वास कर सकूँ कि सारे संसार का स्वामी विपत्ति में भी मेरे किसी काम का नहीं है । For Private & Personal Use Only 'मनोरम', ३७, पत्रकार कालोनी, इन्दौर - ४५२०१८ www.jainelibrary.org

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