Book Title: Jinabhashita 2005 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ शिकार एवं जहरीले रसायनों से जीवों पर आये संकट पर आज आधुनिकता के नाम पर विवेक रखनेवालों अपनी चिन्ता जताई है। की कमी आती जा रही है। नान वेजीटेरियन होटल, पार्लर, कहने को तो देश में वन्य जीव संरक्षण कानून है, मोटल, हट आदि तेजी से खुलते जा रहे हैं। माँस निर्यात की सरकार इनकी सुरक्षा के लिये अनेक कदम समय-समय नित नई कम्पनियाँ खुल रही हैं। नानवेज का इतना उपयोग पर उठाती है। अनेक अभ्यारण्य भी बना दिए गए हैं। | बढ़ता जा रहा है कि वैज वस्तुयें भी शक के दायरे में आती जानवरों के शिकार और उनके अवैध व्यापार को रोकने के | जा रही हैं। आशा की एक किरण के रूप में शाकाहारी लिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार अपने-अपने स्तर पर संगठन काम तो कर रहे हैं, पर आवश्यकता है कि जीव प्रयास करती हैं। अनेक स्वयंसेवी संस्थायें और पर्यावरण संरक्षण कानून को बल मिले। साथ ही स्वयंसेवी संगठन भी रक्षक एवं वन्य जीव जन्तु प्रेमी भी अपने-अपने प्रयासों से | जागरुक बने और प्रचार-प्रसार में भागी बने । सामान्य जनता इनकी रक्षा के प्रयास करते हैं। परन्तु जब अभ्यारण्य ही. जो | प्रकृति की इस अनमोल धरोहर, जीव जन्तुओं को अपनी जावा के पनाहगाह हैं वे ही विनाशगाह साबित हो रहे हैं तब | दृढ़ संकल्प शक्ति से बचा सकें। भारतीय संस्कति की वन्य जीवों की सुरक्षा के लिये और भी अधिक ध्यान देने अहिंसा, दया, करुणा की भावना को हम अगली पीढ़ी तक की आवश्यकता है। अवैध शिकार आदि को रोकने में पहुँचा सकें। कठोर दण्ड का प्रावधान बनाना होगा। यद्यपि व्यवस्था है पर शिक्षक आवास, पर्याप्त नहीं। वन्य जीवों के संरक्षण को जन जाग्रति एवं कुंद कुंद जैन महाविद्यालय परिसर, व्यापक प्रचार-प्रसार की भी आवश्यकता है। खतौली-२५१२०१ (उ०प्र०) भगवान् अभिनन्दननाथ जी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी अयोध्या नगरी में स्वयंवर नाम के राजा राज्य करते थे। सिद्धार्था नाम की उनकी पटरानी थी। माघ शुक्ल द्वादशी के दिन उस महारानी ने विजय नामक अनुत्तर विमानवासी अहमिन्द्र को तीर्थंकर सुत के रूप में जन्म दिया। श्री संभवनाथ तीर्थंकर के बाद दस लाख करोड़ सागर वर्ष का अन्तराल बीत जाने पर अभिनन्दननाथ स्वामी अवतीर्ण हुए थे, उनकी आयु भी इसी अन्तराल में सम्मिलित थी। पचास लाख पूर्व उनकी आयु थी, साढ़े तीन सौ धनुष ऊँचा शरीर था। उनकी कान्ति सुवर्ण के समान देदीप्यमान थी। कुमार अवस्था के जब साढ़े बारह लाख पूर्व वर्ष बीत गये तब इन्हें राज्य पद प्रदान कर इनके पिता वन को चले गये। अभिनन्दन स्वामी के राज्यकाल के जब साढ़े छत्तीस लाख पूर्व बीत गये और आयु के आठ पूर्वांग शेष रहे तब एक दिन विघटते हुए मेघों की शोभा देखकर उन्हें आत्मज्ञान प्रकट हो गया। जिससे विरक्त होकर माघ शुक्ल द्वादशी के दिन अग्र उद्यान में पहुँचकर शाम के समय बेला का नियम लेकर एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर ली। पारणा के दिन उन्होंने अयोध्या नगरी में प्रवेश किया। वहाँ इन्द्रदत्त राजा ने आहार दान देकर पञ्चाश्चर्य प्राप्त किये। इस तरह छद्मस्थ अवस्था के अठारह वर्ष बीत जाने पर वे एक दिन उसी दीक्षावन में असन वृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए। पौष शुक्ल चतुर्दशी के दिन शाम के समय घातिया कर्म के नष्ट हो जाने पर उन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ। भगवान् के समवशरण की रचना हुई। उनके समवशरण में तीन लाख मुनि, तीन लाख तीस हजार छह सौ आर्यिकायें, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकायें, असख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे। समस्त आर्य देशों में विहार कर धर्मोपदेश देते हुए वे भगवान् सम्मेदशिखर पर जा पहुँचे। वहाँ एक माह का योग निरोध कर उन्होंने वैशाख शुक्ल षष्ठी के दिन प्रात:काल के समय एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया। 'शलाका पुरुष' (मुनि श्री समतासागर जी) से साभार -नवम्बर 2005 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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