Book Title: Jinabhashita 2004 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ दयोदय धाम में धर्मपथ पर धन्य कदम पवित्र नर्मदा के किनारे तिलवाराघाट स्थित दयोदय और उनके परिवार को मिलता रहे। कुछ ब्रह्मचारियों ने धाम में शनिवार, 21 अगस्त 2004 को 25 मुनियों ने अपने माता-पिता की सल्लेखनापूर्ण समाधि के वक्त सामूहिक दीक्षा लेकर धर्म पथ पर अपने धन्य कदम बढ़ा आचार्यश्री से वहाँ उपस्थित रहने की प्रार्थना की। दिए। इस बीच आचार्यश्री विद्यासागर जी के श्रीमुख से आचार्यश्री ने ब्रह्मचारियों की विनय के बाद हर एक के गूंजते रहे, जिनवाणी के परमकल्याणकारी महामंत्र और सिर पर हाथ रखा। केशलुंचन किया। उन पर अक्षत-पुष्प उन्होंने मुनिसंघ में नव-पदार्पण करने वाले ब्रह्मचारियों डाले। उनके सिर पर गंधोदक से स्वास्तिक बनाए। हाथ के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का में जिनवाणी लिए वे मंत्रोच्चार करते और नवदीक्षित मार्गदर्शन और 28मूलगुणों पर कुंदन सा खरा उतरने का मुनियों को निर्देश देते जा रहे थे। गंधोदक क्रिया के कठोर अनुशासन पालन करने का उपदेश दिया। अपने उपरांत उन्होंने ब्रह्मचारियों को वस्त्र त्यागने का आदेश नवशिष्यों व श्रावकों को संबोधित करते हए आचार्यश्री ने दिया। इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए श्रद्धालुओं कहा कि कभी ऋषि जाबलि ने यहाँ तपस्या की थी। में अपूर्व उत्साह देखा गया। जैनधर्मावलंबियों ने इसे जाबलि के नाम से प्रख्यात यह संस्कारधानी अब इन 25 साक्षात् देवदर्शन करार दिया। कार्यक्रम का संचालन मुनि मुनियों : वीरसागर, क्षीरसागर, धीरसागर, उपशमसागर, प्रसादसागर जी कर रहे थे। प्रशमसागर, आगमसागर, महासागर, विराटसागर, ब्रह्मचारियों को वस्त्र त्याग कर मनिवेश में आने के विशालसागर, शैलसागर, अचलसागर, पुनीतसागर, दृश्य की एक झलक पाने डेढ़ लाख श्रद्धालु बेताब हो वैराग्यसागर, अविचलसागर, विशल्यसागर, उठे। अनुशासन के सारे तटबंध टूट गए और आचार्यश्री धवलसागर, सौम्यसागर, अनुभवसागर, दुर्लभसागर, को खुद अनुशासन को बनाए रखने की बार-बार अपील विनम्रसागर, अतुलसागर, भावसागर, आनंदसागर, करनी पडी। अगम्यसागर और सहजसागर की दीक्षा भूमि बन गई है। मुनिदीक्षा प्राप्त ब्रह्मचारियों के माता-पिता-भाईउन्होंने श्रावण शक्ला की सप्तमी के इस दिन को बहन भी इस विलक्षण क्षण को अपनी नजर के कैमरे में योग और प्रयोग का दिन करार दिया। अरबों रुपयों खर्च कैद करने आए थे। उन्होंने न केवल आचार्यश्री का करने के बाद भी यह दृश्य प्राप्त नहीं हो सकता। परीक्षा में आशीर्वाद प्राप्त किया, बल्कि अपने पुत्रों को मुनिवेश में विद्यार्थी को किसी विषय में पूरक आ सकता है, वह कम देखकर उनके नेत्र अश्रपरित हो उठे। कोई माता अपने अंक ला सकता है, लेकिन मुनि जीवन में सभी हाथ में आरती लिए हए थीं. तो कोई नारियल । सबकी 28मुलगणों की परीक्षा में पास होना अनिवार्य ही नहीं है, आँखों में आँस थे। वे अपने दुलारे को मुनि जीवन में बल्कि उसमें अच्छे अंक लाना भी जरूरी है। उन्होंने प्रवेश होते देख रही थीं। मुनिरूप में दीक्षित अपने नवशिष्यों को निर्दोष व आचार्यश्री विद्यासागर जी के द्वारा दी गई मुनिदीक्षा निष्कलंक मुनि जीवन जीने की आज्ञा दी। इससे पूर्व के उपरांत अब उनके संघ में मुनियों की संख्या 89 हो गई ब्रह्मचारियों ने आचार्यश्री से न केवल दिगंबरी दीक्षा देने है। इससे पूर्व आचार्यश्री के द्वारा 64 मुनि, 114 का निवेदन किया, बल्कि अपने माता-पिता के उपकारों आर्यिकाएँ, 20 ऐलक, 14 क्षुल्लक,4क्षुल्लिकाएँ सहित और धर्मपथ पर चलने की प्रेरणा देने के प्रति उनका कुल 216 लोगों ने दीक्षा प्राप्त की थी। आभार व्यक्त किया। कुछ ब्रह्मचारियों ने बेहद भावुक विनय की, कि उनकी सल्लेखनापूर्ण समाधि आचार्यश्री के चरणों में ही हो और आचार्यप्रवर का आशीर्वाद उन्हें 'नवभारत' जबलपुर, 22 अगस्त 2004 से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 36