Book Title: Jinabhashita 2003 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 16
________________ क्यों नहीं बढ़ी- मंदिर वहीं स्थापित किया गया तथा मुनि पुंगव । कुंडलपुर के आसपास ही निगाह घुमायें देखें। सतना, रीवा, पन्ना, १०८ सुधासागर जी महाराज ने वहाँ १००८ चन्द्रप्रभु तीर्थंकर की | पनागर, बहोरीबंद, जबलपुर, (हनुमानताल मंदिर) विलहरी आदि स्फटिक मणि की प्रतिमा प्रगटाई अब समझ में आया कि उस स्थानों पर नए मंदिर बनवा कर पुरानी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की स्थान का चांदखेड़ी नाम क्यों था- चन्द्रप्रभु भगवान की प्रतिमा | गई है। भूगर्भ से प्रगट की गई और चांदखेड़ी नाम सार्थक हुआ। पर वहाँ नोट:- विद्वानों एवं पुरातत्व वेत्ता इस मूल प्रश्न पर तथा अतिशययुक्त भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा प्रस्थापित थी इस ध्वस्त मंदिरों के विषय पर प्रकाश डालने की कृपा करें। तरह भारतवर्ष में___ हजारों मंदिर ऐसे हैं जिनमें पुरातन प्रतिमा प्रतिष्ठित है- | श्री महावीर उदासीन आश्रम कुण्डलपुर (दमोह) बालवार्ता सबसे बड़ा काँटा डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' 'जब चाणक्य को काँटा लगा तो उसने सोचा कि यदि गुरुदेव ने उत्तर दिया- 'अपनी, क्योंकि दूसरे की मूर्खता इसी मार्ग से कोई और राहगीर निकला तो उसे भी काँटा लगेगा, | का शिकार भी हम अपनी मूर्खता के कारण बनते हैं। यदि हम इसलिए वह अपने घर गया और हाथ में कुदाल और एक घड़ा | मूर्ख नहीं हों और अपने विवेक को जागृत रखें तो कभी भी भर छाछ (मट्ठा) लेकर आया और कुदाल से उन काँटों की | नुकसान नहीं उठायेंगे।' गुरुदेव ने अपनी बात को पुष्ट करते हुए जड़ें खोदकर मट्ठा डालदिया ताकि वह काँटों का पेड़ सूख जाय। | नीतिकारों के इस मन्तव्य को स्पष्ट किया कि अपनी मूर्खता से इस प्रवृत्ति से पता चलता है कि वह शत्रु को जड़ से | लड़ना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। पुरुषार्थी चिन्तन करता है ही समाप्त कर देने का विश्वासी था।' कि___अनिकेत ने जब यह वृत्त पढ़ा तो वह सोचने लगा कि कः कालः कानि मित्राणि, 'जो किसी प्रकृति प्रदत्त वस्तु को मिटाने में विश्वास रखता है और को देवो, को व्ययागमो? तदनकल क्रिया करता है, वह प्रशंसा का पात्र क्यों? काँटा भी तो कश्चाहं, का च मम शक्ति, एक वनस्पति है। जब काँटा चुभ जाता है तो उसे निकालने के इति चिन्तय मुहुर्मुहुः॥ लिए काँटा ही काम आता है अत: यदि काँटा नुकसान पहुँचाता अर्थात् काल कौन-सा है? मेरे मित्र कौन लोग हैं? मेरा है तो उपकार भी करता है, उसे जड़ से उखाड़ देना ठीक नहीं।' | देश कौन सा है? मेरा आय और व्यय क्या है? मैं स्वयं क्या हूँ अनिकेत के लिए अब काँटा काँटे की तरह चुभने लगा। | और मेरी सामर्थ्य क्या है? इस प्रकार बार-बार चिन्तन करो। वह पता करना चाहता था कि काँटा जब बुरा नहीं, अच्छा भी | गुरुदेव का उक्त उत्तर सुनकर अनिकेत को लगा कि नहीं, अनुपयोगी भी है और उपयोगी भी, तब सबसे बड़ा काँटा | बिना चिन्तन के हम चिन्ताओं से मुक्त नहीं हो सकते। काँटा कौन है? एक दिन अनिकेत ने अपने गुरु से पूछा ... 'गुरुदेव! | कहीं और नहीं हमारे अन्दर है। जब हम विवेक को दबा लेते हैं सबसे बड़ा काँटा क्या है?' तब मूर्खतापूर्ण व्यवहार करते हैं और न चाहते हुए भी मूर्खता के गुरुदेव ने उत्तर दिया- 'वत्स! सबसे बड़ा काँटा तो | शिकार बन जाते हैं। अब हमें अपनी मूर्खता से लड़ना है ताकि मूर्खता है।' अनिकेत ने फिर पूछा-गुरुदेव ! किसकी मूर्खता सबसे । हमारा जीवन विवेक सम्मत और जागरुक बने। बड़ा काँटा है अपनी या दूसरे की? 14 नवम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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