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का परिचय जैन परिपथ शीर्षक में भी दिया गया है, लिखा गया | शताब्दी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। दक्षिणी पूर्वी समूह में जैनमंदिर है- 'औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के निकट एलोरा के गुफा मंदिरों में | का उल्लेख है। असाधारण और गहन निर्माण कार्य वाली पांच जैन गुफाएँ हैं। जैन भुवनेश्वर से ७ कि.मी. पश्चिम में उदयगिरी और खण्डगिरी तीर्थंकरों पार्श्वनाथ और गोम्मटेश्वर की प्रतिमाओं वाली गुफा ३२ | की पहाड़ियाँ हैं, जहाँ चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ इन्द्रसभा सभी जैन गुफाओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। मंदिर के भीतर भगवान | मधुमक्खी के छत्ते के समान प्रतीत होती हैं। कई गुफायें आलंकारिक महावीर की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा है। जैन मंदिर के ऊपर की | ढंग से तराशी गई हैं तथा ऐसा माना जाता है कि इनमें से ज्यादातर पहाड़ी के शिखर पर पारसनाथ की ५ मीटर ऊँची प्रतिमा से नीचे | पहली शताब्दी में जैन तपस्वियों के लिये तराशी गईं थीं। जैन एलोरा की गुफाओं को देखा जा सकता है।' उदयपुर से ९८ मंदिरों की एक श्रृंखला भी इस परिसर का एक अंग है। म.प्र. के कि.मी. दूर रनकपुर के सुन्दर जैन मंदिर परिसर का भी उल्लेख है। मांडू में सुसज्जित मंदिरों वाला जैनमंदिर परिसर है इनमें संगमरमर,
पश्चिमी भारत के जैन परिपथ में गुजरात के हाथी सिंह | चांदी और सोने की बनी तीर्थंकरों की प्रतिमायें हैं। मंदिर अहमदाबाद का सुंदर चित्र है। इसी प्रकार माउन्ट आबू के | दक्षिण भारत तीर्थयात्रियों का सच्चा स्वर्ग अध्याय के जैन दिलवाड़ा मंदिर का चित्र और परिचय है। मंदिरों का परिचय देते | परिपथ में श्रवणबेलगोल की विश्व प्रसिद्ध बाहुबली स्वामी की हुए लिखा गया है- गुजरात में जैन मंदिरों की एक समृद्ध विरासत मूर्ति तथा मूल बद्री के जैनमंदिर के सुंदर चित्र दिये गये हैं। है। अहमदाबाद के प्रचीन नगर के उत्तर में, सफेद संगमरमर का ! बैंगलौर से ३५ कि.मी. उत्तरपूर्व में स्थिल मूलबद्री में १८ वस्तियाँ बना हाथी सिंह मंदिर है। १८४८ में निर्मित यह मंदिर १५ वें] है इनमें से प्राचीनतम १५ वीं शताब्दी का चंद्रनाथ मंदिर है। तीर्थं कर को समर्पित है। जैन धर्म के पवित्रतम तीर्थस्थलों में एक 'बादामी' की गुफाओं के परिचय में गुफा चार सातवें जैन तीर्थंकर पालिताणा, अहमदाबाद से लगभग २१५ कि.मी. दूर है यहाँ की | को समर्पित है। इसी तरह बदामी से २० कि.मी. दूर पट्टाडकल शत्रुजय पहाड़ी श्वेताम्बर जैनों के लिये पवित्र है। ११ वीं से | में राष्ट्रकूट काल (९ वीं शताब्दी) के जैन मंदिर का उल्लेख है। लेकर १९ वीं शताब्दी के लगभग ८०० मंदिर इस पहाड़ी पर | | श्रवणबेलगोल के संबंध में लिखा गया है 'भारत के बिखरे हुए हैं। पहाड़ी पर स्थित आदिश्वर मंदिर में स्फटिक की प्राचीनतम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थलों में एक है। आंखों वाली तथा सोने की मुकुट वाली ऋषभ नाथ की मूर्ति है। | यहाँ पर भगवान् गोमटेश्वर (बाहुबली) की एक शैल की बनी
'जूनागढ़ जनपद में स्थित गिरनार पर्वत, गुजरात का दूसरा | १७ मी. ऊंची विशाल प्रतिमा है, विन्ध्यगिरी पहाड़ी के ऊपर सबसे बड़ा जैन तीर्थ स्थल है। पर्वत के शिखर पर काफी ऊँचाई | स्थित एक शैल की बनी सबसे ऊंची प्रतिमा मानी जानी वाली पर १२ वीं शताब्दी के मंदिर हैं जो उत्कृष्ट नक्काशी से सुसज्जित | १००० वर्ष प्राचीन यह प्रतिमा सरलता व सौम्यता को मानवीकृत हैं। अन्य महत्वपूर्ण स्थलों में नेमिनाथ स्थित १६ मंदिर, मल्लिनाथ | करती है। बारह वर्षों में एक बार महामस्तकाभिषेक होता है। मंदिर तथा अहमदाबाद से १३० कि.मी. दूर पाटन स्थित सैकड़ों | नगर में तथा चंद्रगिरी पहाड़ी पर कई रोचक जैन बस्तियाँ व मठ मंदिर हैं। जामनगर स्थित शांतिनाथ और आदिनाथ मंदिर क्रमशः भी हैं। श्रवणबेलगोला हासन से ४८ कि.मी. दूर है। भगवान् सोलहवें और प्रथम तीर्थंकरों को समर्पित हैं।'
बाहुबली की प्रतिमाएँ कारकल (मूलबद्री से २० कि.मी. उत्तर) राजस्थान के जैनमंदिरों में माउन्ट आबू का विस्तार से | वेनर (मंगलौर से ५० कि.मी. उत्तर-पूर्व) तथा धर्मस्थल (मंगलौर वर्णन है। इसके अतिरिक्त लोदुर्वा स्थित भव्य मंदिर, चित्तौडगढ़ | से ७५ कि.मी. पूर्व) में भी पायी जाती हैं।' स्थित सतवीस देवरा जिसमें जैन देव पुरुषों की २७ प्रतिमाएँ हैं। अपने पाठकों को जानकारी देने के साथ-साथ इस लेख चित्तोड़गढ़ में भव्य महावीर दिगम्बर जैन स्वामी मंदिर एवं कीर्ति | का एक उद्देश्य यह भी है कि जैन पत्र-पत्रिकाओं के संपादक, स्तंभ है। उदयपुर से ९८ कि.मी. दूर रनकपुर स्थित आरावली प्रकाशक, विद्वान, लेखक, समाज सेवी एवं सुधी पाठक जन पहाड़ियों में १५ वीं शताब्दी के मंदिर, इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामान्य के लिये जैन तीर्थों/धार्मिक स्थलों का इसी प्रकार जैन विभिन्न तरह से तराशे गये। १४४४ स्तंभों से युक्त भव्य छत बाला | परिपथ बनाकर परिचय प्रस्तुत कर सकें। चौमुखी मंदिर। उदयपुर से ६५ कि.मी. दक्षिण में ऋषभदेव का
६, शिक्षक आवास मंदिर आदि का उल्लेख है।
श्री कुंद-कुंद जैन पी. जी. कॉलेज मध्यभारत की आध्यात्मिक यात्रा के जैन परिपथ में लिखा
खतौली - २५१ २०१ (उ.प्र.) गया है कि खजुराहो नामक ग्राम में ९ वीं से लेकर १३ वीं
16 नवम्बर 2003 जिनभाषित
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