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दिवसीय शिवरों का आयोजन होता रहता है जिसके पास समय एक स्वस्थ व्यक्ति को सबेरे सूर्योदय से पूर्व उठकर दैनिक का अभाव है उनके लिये यह उपयोगी है दस दिन तक रोगी की । कार्य से निवृत्त होकर थोड़ी देर टहलना या योगाभ्यास करना दिनचर्या को नियमित किया जाता है। भोजन में रसाहार, फलाहार चाहिये। तत्पश्चात् स्नान करके प्रभु स्मरण के पश्चात् हल्का नास्ता तथा अंकुरित अन्न का प्रयोग करके पाचन प्रणाली को सुधारा | जैसे मौसम के फल, रस या अंकुरित अन्न (अथवा रात भर भीगे जाता है। प्रातः काल योगाभ्यास, प्राणायाम आदि से मानसिक हुये) लेना चाहिये। दोपहर को संतुलित आहार चोकर सहित तनावों को दूर किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा का हराभरा आटे की रोटी, हरी सब्जियाँ, सलाद तथा दही आदि लिया जा सुरम्य वातावरण इन सब में बड़ा सहायक होता है। सामान्य सकता है। बीच में इच्छा होने पर सब्जी का सूप, मौसम का कोई उपचारों जैसे मिट्टि को पट्टी, एनिमा, वाष्प स्नान, धूप स्नान, फल या रस लिया जा सकता है। शाम का भोजन सूर्यास्य से पूर्व मॉलिश आदि से शरीर की क्रियाशीलता बढ़ जाती है इस प्रकार अवश्य ही समाप्त कर लेना चाहिये, यह भोजन दोपहर के ही व्यक्ति अपने आपको तरोताजा महसूस करते हुये पुनः कार्य के | अनुसार हो। रात दस बजे तक सो जाना चाहिये। लिये तैयार हो जाता है।
(19) हम बीमार न पड़ें इसके लिये प्राकृतिक (17) क्या केवल योगाभ्यास से रोग ठीक हो जाते | चिकित्सालय में क्या है?
यदि हम आपकी दिनचर्या नियमित रखें, अपना खानयोगाभ्यास एवं प्राकृतिक चिकित्सा दोनों का सम्मिलित | पान संतुलित रखें, अपनी विचाराधारा निर्मल एवं सात्विक रखें प्रयोग अधिक प्रभावी होता है किसी भी रोग को ठीक करने के | समय पर उठें, समय पर सोयें तथा समय पर भोजन करें जो भी लिये आहार पर ध्यान देना जरूरी है। सभी प्राकृतिक चिकित्सा में | कार्य करें मन लगाकर करें। चिन्ता तथा तनाव से मुक्त रहकर योगाभ्यास की व्यवस्था रहती है अत: पूर्ण लाभ के लिये प्राकृतिक | प्रसन्न रहें तो बीमारी से बचे रह सकते हैं। यही प्राकृतिक चिकित्सा चिकित्सालय योग और संतुलित आहार तीनों आवश्यक हैं। | के स्वस्थ रहने के नियम हैं। (18) एक स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या क्या होनी ।
'कार्ड पैलेस' चाहिये?
वर्णी कॉलोनी, सागर (म.प्र.).
बोध कथा
सद्भावना
डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' एक शिष्य ने अपने गुरु से विनम्र होकर पूछा-'गुरुदेव! | होकर विचरण करते हैं और अपनी शरण में आने वालों को भी इस संसार में ऐसी कौन-सी भावना है जिसे हम खुद भी चाह | निर्भय बना लेते हैं।' सकें और दूसरों को भी चाह सकें?'
गुरुदेव की बातें सुनकर शिष्य एकदम ही 'मेरी भावना' गुरुदेव ने सोच-विचारकर उत्तर दिया कि 'ऐसी भावना | की यह पंक्तियाँ गुनगुना उठाहै दुआ या सद्भावना।'
मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे। शिष्य ने प्रतिप्रश्न किया कि 'गुरुदेव दुआ या सद्भावना
दीन-दुखी जीवों पर मेरे उर से करूणा स्त्रोत बहे॥ ही क्यों?'
दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे। तब गुरुदेव ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि -
साम्यभाव रक्खू मैं उन पर, ऐसी परिणति हो जावे। 'वास्तव में व्यक्ति के अन्दर यदि सद्भावना का समावेश हो जाये ___ यह पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए उसे लगने लगा मानो मेरा तो संसार के सभी विवाद, लड़ाई-झगड़े, विषमता, अन्याय, | कोई शत्रु नहीं है, में सबका मित्र हूँ। सद्भावना का संसार अत्याचार समाप्त हो जायें। सद्भावना के अभाव में व्यक्ति अपने | फैलते ही संसार निरापद लगने लगा उसे और वह बोल उठा
ओर पराये का भेद करके विपरीत व्यवहार करते हैं। दिगम्बर | सद्भावों की जय हो। मुनियों को देखो! वे सद्भावना के धनी होने के कारण ही सबके
एल-६५, न्यू इन्दिरा नगर, प्रति सद्भाव और समभाव रख पाते हैं। वे स्वयं भी निर्भय
बरहानपुर (म.प्र.)
20 नवम्बर 2003 जिनभाषित
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