Book Title: Jinabhashita 2003 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ क्या कुंडलगिरि (दमोह-म.प्र.) बड़े बाबा का मूल स्थान है? ब्र. अमरचंद जैन, एम.ए. जनश्रुतियों, प्राप्त पुरातन लेखों एवं गजेटियर्स के अनुसार । स्थापित की गईं तथा प्रांगण का स्वरूप दिया गया- परकोटे की ऐसा लगता है कि बड़े बाबा अन्यत्र से आकर यहाँ स्थापित हुए | दीवालों पर आर्च सहित खांचे बनाकर भी मूर्तियाँ (अवशेष) हैं। मंदिर की आंतरिक एवं वाह्य संरचना इस आधार को इन्कार | रखा दिये गये थे। करती है कि बड़े बाबा तथा पार्श्वनाथ भगवान की दोनों ओर इस तरह इन तीन असंप्रक्त दीवालों पर खड़े बड़े बाबा के मूर्तियाँ जिस स्थान पर मंदिर बना है वहाँ मूलरूप से प्रतिष्ठापित | मंदिर की सृदृढ़ता का आप अंदाज लगा सकते हैं गर्भगृह में प्रवेश हुई होंगी। अत: पूर्व में कुण्डलगिरि के संबंध में लिखा इतिहास | द्वार की 9.5 फुट मोटी दीवालें तथा शिखर के भीतरी तरफ शिखर कथायें-लेख पर आश्रित हम यह विश्वास करते हैं- हमारी धारणा | की पोल इस संरचना को सावित करते रहे कि कमजोर हो रहे इस को बल मिलता है कि बड़े बाबा का मूल स्थान कुंडलगिरि पर | ढांचे में बड़े बाबा को कब तक सुरक्षित रखा जा सकता है। विराजमान मंदिर में नहीं था। कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के पूर्व अध्यक्ष स्व. श्री वहाँ प्राप्त शिल्पावशेष, शिलापट्ट पर उकेरी गई अनेकानेक | प्रकाशचन्द्र जी एडवोकेट (दमोह) ने शिखरों की पोल से कबूतर तीर्थंकर मूर्तियाँ, शासन देवी देवताओं की उत्कीर्ण की गई मूर्तियाँ- के अण्डे, मरे कबूतर तथा गंदगी साफ कराई थी तथा उन्होंने पीठिका बेदी सिंहासन तथा गर्भालय की तीनों ओर दीवाल पर | मंदिर की संरचना का पूरा-पूरा व्यौरा भी प्रकाशित कराया था। चिपकाये शिलापट्ट जिसमें तीर्थंकर मूर्तियों को उकेरा गया है उपरोक्त से सिद्ध है कि और जहाँ तहाँ जैसा जितना स्थान रिक्त मिला उसी अनुसार लगा बड़े बाबा की मूर्ति का मूलस्थान कुण्डलगिरि पर्वत पर दिये गये हैं (उनकी पूज्यता कायम रखने के निमित्त) कुछ शिल्प | नहीं था तथा बनाया गया मंदिर कमजोर होता जा रहा है। के शिलाखंड इधर उधर मंदिरों में तथा मूर्तियाँ भी पर्वत के मंदिरों अब ध्वस्त मंदिर की कहानियों पर गौर करेंमें और तालाब के किनारे तलहटी में अभी भी स्थापित हैं। ऐसी आज सारे देश में जगह-जगह मूर्तियाँ-शिल्पावशेष एवं इस सब संरचना से यह बिलकुल निर्विवाद है कि बड़े बाबा की | ध्वस्थ-खंडहर मंदिर प्राप्त हो रहे हैं इनके कारणों पर भी विचार पुरातन मूर्ति अन्य स्थान से लाकर (या आकर) यहाँ बाद में मंदिर | करें क्यों? बनाया गया। आशा है पुरातत्व वेत्ता इससे सहमत होंगे। जंगलों-पर्वतों एवं वीहड़ों में, वीरान स्थानों में ये प्राप्त हैंयह बात भी ध्यान देने योग्य है कि मंदिर-परिसर में पीछे | जनसाधारण का उक्त स्थानों से पलायन-व्यापार के लिए- नदियों की ओर चबूतरे पर असुरक्षित सैकड़ों मूर्तियाँ खण्डित तथा | की बाढ़ के कारण- भूकम्प से- डाकू चोरों के भय से मौसम की सांगोपांग-शिल्प अवशेष बहुत समय से पड़े थे। तलहटी में वैष्णवों | मार से। शासकों द्वारा तथा विधर्मियों द्वारा विद्वेष से मूर्तियों, द्वारा अंबिका की मूर्तिमंदिर भी इन अवशेषों का हिस्सा था? | मंदिरों को गिराने, नष्ट करने के कारण-मुगलों के शासन काल में संग्रहालय बनाने तथा शिल्पावशेष-मूर्तियों के सुरक्षित | मूर्तियों को ध्वस्त करने से। प्राकृतिक विपदाओं के साथ स्थानीय रखने की विधा उस समय प्रचलित नहीं थी, और समस्या उस समाज के सम्पन्न न होने के कारण भी कई स्थानों पर खंडहर समय रही होगी कि इतने बड़े बाबा तथा पार्श्वनाथ की मूर्तियों को मंदिर तथा मूर्तियाँ अभी भी असुरक्षित पड़ी हैं तथा मूर्ति तस्करों कैसे सुरक्षित तथा पूज्यता रखी जाये- अत: मंदिरनुमा शिखर युक्त का व्यापार अभी भी साथ-साथ फल फूल रहा है। प्रारंभ में एक ढांचा तैयार किया गया होगा .... समय की मार से इन्हीं किसी कारण से बड़े बाबा का मंदिर जो कुंडलगिरि इस मंदिर में कमजोरी देख नीचे से शिखर तक दीवाल उठाकर | पर्वत के पास अवस्थित था ढह गया-जनश्रुति के आधार पर मूर्ति एक और पर्त्त खड़ी की गई ....इसके अनन्तर जो भी कारण रहे हों | पटेरा ले जाई जा रही थी? पर कुण्डलगिरि पर्वत पर ही क्यों रूक तीसरी बार फिर गर्भगृह से लेकर ऊपर चोटी (शिखर) तक | गई? एक प्रश्न हैदीवाल फिर खड़ी कर दी गई। इस तरह इस मंदिर के वर्तमान . कुण्डलगिरि पर जहाँ यह मूर्ति स्थापित हुई थी वहाँ अंतिम स्वरूप की संरचना है जो प्रकाशित अन्यत्र साहित्य द्वारा भी श्रुतकवेली श्री श्रीधर केवली का निर्वाण स्थल था, वहाँ उनके प्रचारित किया गया है। और यह बात सत्य है कि गर्भगृह की पुरातन चरण स्थापित थे। अतः यह सिद्ध क्षेत्र भी कालांतर में दीवालें ऊपर से नीचे तक तीन असंप्रक्त दीवाल द्वारा खड़ी की घोषित हुआ। गई थीं। इस संबंध में एक प्रसंग और है कि चांदखेड़ी क्षेत्र पर इस मंदिर के चारों ओर परकोटे के भीतर गुमटियोंनुमा | भगवान ऋषभदेव की मनोज्ञ अद्भुत मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति कुछ छोटे-बड़े शिखरयुक्त मंदिरों में पुरातन एवं नई मूर्तियाँ भी । भी अन्य स्थान ले जाई जा रही थी पर वह नदी किनारे से आगे -नवम्बर 2003 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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