Book Title: Jinabhashita 2001 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 14
________________ ध्यान केन्द्रों की शुरुआत हो चुकी है। २. " एयर लाइन" एवं पाँच सितारा होटलों में "जैन-फूड प्रकोष्ठ की स्थापना की जावे " जहाँ शाकाहार को बल मिल सके और वहाँ शाकाहार की गुणवत्ता का वैज्ञानिक निष्कर्षो सहित प्रचार किया जावे। ३. जैन साधुओं के शिथिलाचार पर सकारात्मक नियंत्रण हेतु एक "श्रमण-संगीति" के तत्त्वावधान में "मूलाचार" जैसे आगम ग्रंथों का आचार्य परमेष्ठी द्वारा "वाचना" का कार्यक्रम रखा जावे और श्रावक समुदाय तथा श्रावक संघों के बीच इसकी खुली वाचना प्रशस्त की जावे। इससे इस बदलते परिवेष में " श्रमण- संविधान" को जबरदस्त बल मिलेगा। वाचना की कबरेज प्रतिदिन राष्ट्रीय दैनिक अखबारों में दी जाये। इसे पढ़कर शिथिलाचारी साधु आत्म-निरीक्षण कर अपने महाव्रतों को विशुद्ध पालन करने के लिए संकल्पित होगे। ४. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश की प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों/ग्रंथों के संरक्षण और शोध के लिए जैन शोध संस्थानों को और प्रभावी बनाया जावे। इस दिशा में अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना जैसी संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जावे। ५. जैन शोधार्थियों के शोध-प्रबन्धों के प्रकाशन की व्यवस्था की जाकर उन्हें विदेशों की लायब्रेरी में भेजने की व्यवस्था कारगर की जावे। 2 आशा है कि उपर्युक्त कार्ययोजनाओं के संबंध में एक सार्थक चिंतन होगा। इस पर सुधी पाठकों की प्रतिक्रिया भी सादर आमंत्रित है। यदि उन्हें क्रियान्वित किया गया तो भगवान महावीर स्वामी हमारे बीच जीवन्त हो उठेगे और आतंकवाद, हिंसा, क्रूरता का पना कुहासा छँटने में देर नहीं लगेगी। शा.उ. मा. विद्यालय ३ के सामने बीना बीना (म.प्र.) 12 अप्रैल 2001 जिनभाषित Jain Education International उर्दू शायरी में अध्यात्म हम अनादिकाल से संसरण कर रहे हैं हर दौर रह चुका है हमारी कयामगाह, ' हम खानुमा खराब मुसाफिर अवद' के हैं। सुख-दुःख हमारे ही कर्मों के फल हैं तकदीर के कातिब से इल्जाम रसी 'कैसी, खुद हमने खता की थी, खुद हमने सजा पाई। पौरुष ही सफलता का मन्त्र है चले चलो कि चलना ही दलीले कामरानी 'है, जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंजिल पा नहीं सकते। प्रस्तुति शीलचंद्र जैन आत्मज्ञान ही सबसे बड़ा पौरुष है फिराक गोरखपुरी दुनिया को जिस दृष्टि से देखते हैं, वैसी ही दिखाई देती है -७ एक तर्जे तसव्वुर के करिश्में हैं ब-हर-रंग, ऐ दोस्त ये दुनिया न बुरी है, न भली है। , जमाने में उसने बड़ी बात कर ली, खुद अपने से जिसने मुलाकात कर ली। जो निःस्पृह हो जाता है, सारा संसार उसका दास बन जाता है भागती फिरती थी दुनिया, जब तलब करते थे हम, जब से नफरत हमने की. वह बेकरार आने को है। For Private & Personal Use Only सोज होशियारपुरी ताबिश जिगर मुरादाबादी मजाज शेरी भोपाली १. विश्रामस्थल, २. अभागा, ३. अनन्तकाल, ४. लेखक, ५. दोषारोपण, ६. सफलता का उपाय, ७. सोचने का ढंग 13, आनंदनगर, जबलपुर - 482004 www.jainelibrary.org

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