Book Title: Jinabhashita 2001 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ एक अच्छा प्रयास है। महिलाओं को गर्भ और उससे संबंधित जानकारी तो होना ही चाहिये। अनेक महिलायें जानकारी न होने पर गलतफहमी का शिकार बन जाती हैं। सामान्यजनों में गर्भपात को एक मामूली सी शल्यक्रिया बताया जाता है जबकि जब तक हमें पता चलता है कि महिला गर्भवती है तब तक गर्भ काफी विकसित हो जाता है। मैं अपनी एक परिचित से मिलने उनके घर गई। घर का माहौल बड़ा तनावपूर्ण था। इधर-उधर की कुछ बातें करने के बाद जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैने 'पूछा क्या बात है। बताइए शायद आपका दुख-दर्द बांट सकूँ तो वह फूट-फूट कर रोने लगीं और उन्होंने बताया कि वह कई रातों से सो नहीं पा रही हैं, क्योंकि उन्होंने हाल में ही गर्भपात कराया था। उन्हें आज भी यह अपराध बोध हो रहा है कि सबने मिलकर बच्चे को मरवा दिया। वे आज भी नार्मल स्थिति में नहीं आ पा रही हैं। अनेक डॉक्टर उनका इलाज कर चुके हैं किसी ने तो उन्हें कुछ ऊपरी बाधा हो गयी है यह भी सिद्ध कर दिया, पर उनके पल-पल पनपते अपराध बोध के अहसास को कौन दूर करायेगा? यह सही है कि समय घावों को भर देता है पर उसकी पीड़ा, स्त्री का गर्भ धारण करना और फिर गर्भपात कराना इस शारीरिक और मानसिक व्यथा को भुक्तभोगी ही समझ सकती हैं। सच ही है 'जाके पैर न फटी बिवाई को क्या जाने पीर पराई'। यह भी सच है कि पाश्चात्य संस्कृति में निहित भोगवाद ने हमारी संस्कृति और हमारे चारित्रिक गुणों की मर्यादा खत्म कर दी है। पापऔर जीव दया को लेकर हमें जो संस्कार पुण्य मिले हैं वे सब बिखर से रहे हैं। गर्भपात से जहाँ जीव हिंसा होती है वहीं महिलाओं में गर्भाशय संबंधी अनेक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं। जैसे गर्भाशय में छेद, बाँझपन, सूजन, रक्तस्राव, मासिक धर्म में गड़बड़ी, कमर दर्द, श्वेत प्रदर जैसी अनेक संक्रामक बीमारियाँ हो जाती है। महिलायें न केवल शारीरिक तौर पर, अपितु मानसिक तौर पर भी बीमार हो जाती हैं और एक अच्छा खासा परिवार तनावपूर्ण स्थिति में आ जाता है। कुछ वर्षों से हमारी संकीर्ण सामाजिक मनोवृत्ति के कारण अल्ट्रा साउण्ड के माध्यम से Jain Education International कन्या-भ्रूणों का गर्भपात तेजी से बढ़ रहा है। लड़की पैदा होने और बड़ी होने के साथ-साथ उस पर बढ़ रही हिंसा, बलात्कार, दहेज आदि से निपटने के लिये उन्हें गर्भ में ही समाप्त किया जा रहा है। यह मानवीय सभ्यता का सबसे त्रासदी भरा पहलू है। इससे समाज का समीकरण भी बिगड़ रहा है जिसका फल आज नहीं तो कल हम सबको भुगतना पड़ेगा। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं यूनिसेफ ने भी इसे गंभीरता से लिया है। यद्यपि पढ़े-लिखे वर्ग की सोच में परिवर्तन आया है कि लड़का-लड़की में भेद कैसा ?' पर इतने विशाल समाज की सोच को बदलना एक कठिन कार्य है। यह सच है कि बढ़ती हुई जनसंख्या ने देश के सामने अनेक समस्यायें खड़ी कर दी हैं। यही कारण है कि परिवार नियोजन कार्यक्रम को एक योजना के तहत पूरे देश में लागू करना पड़ा है। परिवार नियोजन के अनेक साधन एवं गर्भ निरोधकों की एक लंबी श्रृंखला है, फिर गर्भपात क्यों? हम अपना विवेक, संयम और संस्कार रखें तो न केवल अपने शरीर को शोषण से बचा सकते हैं अपितु गर्भपात जैसे भयंकर पाप से भी बच सकते हैं, और संयममय जीवन अपनाकर सुख-शांति के मार्ग पर चल सकते हैं, तो आइये हम सोचें, समझें और जीवन में यह वाक्य उतारें कि 'संयम ही जीवन है। ' ६ शिक्षक आवास श्री कुन्दकुन्द जैन कालेज खतौली- २५२२०१ (उ. प्र. ) For Private & Personal Use Only कविताएँ ऋषभ समैया 'जलज' टंच कसती है कसोटी जो करें चोखा करें आप जो लेखा करें, वह आप ही जोखा करें टंच कसती है कसोटी, जो करें चोखा करें फूलते हैं किस तरह से, एक पल में फूटने जिंदगी को जानना हो, बुलबुले देखा करें आप अपने ही चरण से, पा सकेंगे मंजिलें रास्ते के अनुभवों से, फलसफा सीखा करें सांस हर अनमोल है, दिल साज की आवाज है गुनगुनाने को मिली है, व्यर्थ न चीखा करें एक दिन की बात हो तो माफ भी कर दे खुदा ये कहाँ की बदसलूकी, रात-दिन धोखा करें मंजिल की पहुँच यार कोई दिल्लगी नहीं अपनी खुदी की चाह नहीं, बंदगी नहीं कितनी भी कामयाब हो, वह जिंदगी नहीं तेजाब है अहम, जला डालेगा आशियाँ बर्बादियाँ मिलेंगी, अगर सादगी नहीं कहने को बहुत कहता है, करने को कुछ नहीं मंजिल की पहुँच यार कोई दिल्लगी नहीं कागज के फूल दूर से लगते हैं लाजबाब डाली पे खिले फूल सी बस ताजगी नहीं , निखार भवन, कटरा बाजार, सागर 470002 (म. प्र. ) अप्रैल 2001 जिनभाषित 17 www.jainelibrary.org

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