Book Title: Jina Sutra Part 1 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 2
________________ जिन-दर्शन गणित, विज्ञान जैसा दर्शन है। काव्य की उसमें कोई जगह नहीं। वही उसकी विशिष्टता है। दो और दो जैसे चार होते हैं, ऐसे ही महावीर के वक्तव्य हैं। महावीर धर्म की परिभाषा करते हैं: जीवन के स्वभाव के सूत्र को समझ लेना धर्म है। जीवन के स्वभाव को पहचान लेना धर्म है। स्वभाव ही धर्म है। इसलिए महावीर के वचन जैसे महावीर नग्न हैं वैसे ही महावीर के वचन भी नग्न हैं। उनमें कोई सजावट नहीं है। जैसा है। वैसा कहा है। तो जब मैं महावीर के मार्ग पर बोल रहा हूं तो तुम खयाल रखना मैं चाहता हूं कि शुद्ध महावीर की बात तुम्हारी समझ में आ जाए; और जिसको वह यात्रा सुगम मालूम पड़े वह चल सके। वहां भक्ति को भूल ही जाना। वहां सूफियों से कुछ लेना-देना नहीं। वहां तो तुम शुद्ध निर्भाव होने की चेष्टा करना, क्योंकि वहां निर्भाव ही गाड़ी का चाक है। महावीर का मार्ग शुद्धतम मार्गों में से एक है। लेकिन उसे शुद्ध रखना। महावीर के मार्ग पर पूजा को मत ले आना, प्रार्थना को मत ले आना। Jain Education International शेष अगले कवर फ्लैप पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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