Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 446
________________ 420 कण कोप्यजिनालय कोप्परसदण्डनायकरु सर्वनमस्यवागि बिट्ट तोट ब्रह्मदेवन के [ रे ]मिं बडगलु काल मत १ freer arrrr बडगण नेमिट्टियंगडि बोन्ड [1] समस्तनकरंगळु यरड बसदिय देवर नंदादीविगेगे अंगडियलु सिंगाको बिट्ट यपणे भरशन १ ॥ दण्डिगे मोहि व्यवहरिसुवल्लि ॥ [1] इन्तीधर्मवनारोर्बरु किडिसुवरु प्रति पुण्यतीर्थंगळ नितरोल् गोब्राह्मणरं स्वहस्तदिं वधिसिद महापातकरप्पह ॥ स्वदत्तां परदतां वा यो हरेत वसुंधरां । पटर्वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः ॥ मंगळमहाश्री श्री ॥ JAINISM IN SOUTH INDIA हिन्दी सारानुवाद --- आडकी के स्वामी सेनापति कोप्पदण्डनाथकी प्रशंसा । वह चोलकटकका विध्वंसक तथा चालुक्य सेनाका संरक्षक था । वह काश्यपगोत्र तथा सारस्वतकुलमें उत्पन्न हुआ था। अनेक गुणोंसे समलङ्कृत, सम्यग्दर्शनके सिद्धान्तोंमें सततरत श्रीकाळिसेद्दि, संकिसेहि, मल्लिसेट्टि, वट्टदसेट्टि, पारिश्वसेट्टि, वर्धमानसेट्टि, काळिसेट्टिकी प्रशंसा । ये सब गुणवीर सिद्धान्तदेवके शिष्य थे । श्रीमान् चालुक्यनृपविक्रमके ५० वें वर्ष, विश्वावसु संवत्सरमें फाल्गुन सुदी १० गुरुवारके दिन सेनापति कोप्पने उक्त सात वणिजोंकी सहायतासे आडकीमें एक विशाल जैन मन्दिर बनवाया और उसमें बड़े महोत्सव पूर्वक भग. पार्श्वनाथकी मूर्ति स्थापित की तथा ऊपर स्वर्णकलशारोहण किया। उस मन्दिरका नाम कोप्पजिनालय रखा गया । उसले भगवान्की दैनिक एवं विशिष्ट पर्वों में अर्थात् जीवदयाष्टमी, नन्दीश्वर अष्टमी, संक्रान्ति, ग्रहण, व्यतीपातके समय पूजाके लिए तथा मन्दिरके संरक्षण, मरम्मत, एवं कुछ नये निर्माणकार्यके लिए एक मन्तर प्रमाण बगीचेको स्थायी निधिके रूपमें दे दिया तथा आडकीके दक्षिणमें एक दूकान ( या कमरा) भी दे दिया। दोनों मन्दिरों में भगवानके आगे सतत दीपक जलानेके लिए आडकीके व्यापारीसंघने प्रत्येक दूकानसे तैलकी मात्रा नियत कर दी तथा व्यापार पर करसे जो आमदनी होती थी उसे भी मन्दिरके लिए दे दिया । [ नोट - इस लेखसे तत्कालीन धार्मिक इतिहास एवं व्यापारीसंघ और उनकी दानविधि पर प्रकाश पड़ता है । ] [११] asht rich भीतर एक शिलास्तंभपर - प्राचीन कन्नडमें ( लगभग सन् ११७१ इ. ) [ तीसरी ओर ] श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री [1] स्वस्ति [1] समधिगतपंचमहाशब्द महाराजाधिराज परमेश्वरं कालंजरपुरवराधीश्वरं कळचुर्य कुळकमलमार्तंडे कदनप्रचंडं मानकनकाचळ सुभटरादित्य कलिगळंकुश गजसामन्तं शरणागतवञ्चपंजरं प्रतापलंकेश्वरं शनिवारसिद्धि, गिरिदुर्गमल्ल चलदंकराम साहसभीम नामादिसमस्त प्रशस्तिसहितं श्रीमतु रायमुरारि भुजबळमल्ल सोयिदेवरु सेलेयहळ्ळियकुप्पद नेलेवीडिनलु सुखसंकथाविनोददिं राज्यं गेय्युत्तमिरे ॥ ५ नेय खरसंवत्सरद पुष्य सुद्ध पचमी सोमवारदन्दु समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महामंडळेश्वरं मिरितेनाड एचरस श्रीमन्महाप्रधानं दंडनायकराडकिय महाप्रभुगळु विष्णुदेवरसरं बाचिदेवरसरं त्रिलोचन देवरसरं मुख्यवागि स्वस्ति [1] समस्तवस्तुविस्तीर्ण घूर्णितार्णवपरीत भूतळ भुवनविख्यातरूं पंचशतवीर शासन लब्धानेकगुणगणाळंकृतशरीररुं सत्यशौचाचारचारुचारित्रनयविनयज्ञानवीरवर्णजुधर्मप्रतिपाळनविशुद्धगुडध्वजविराजितानून साहससत्याचारवीरलक्ष्मीसमालिंगितविशाळवक्षस्थळरुं बलदेव वासुदेवकंडळिमूलभद्रवंशोद्भवमप्य श्रीमदय्यावळेयय्र्वरु स्वामिगळु प्रमुख मूचत्तारु बीड मुम्मुरिदंडगळुभवनानादेलिग मुख्यवागि श्रीमदाडकिय तेंकण कोप्पजिनालयद चेम पार्श्वदेवरंगभोगवष्टविधार्थनेगं जीवदयाष्टमी नंदीश्वरदष्टमी

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