Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 449
________________ APPINDIX II हिन्दी सारानुवाद-ग्राम के दक्षिणमें एक जैन मन्दिर, गवरेश्वर का बगीचा, मोगेश्वरदेव तथा हिरियजम्बुगेके प्रभुका उल्लेख । दण्डहत्तिके महाप्रभु नागरसका उल्लेख । कोरवार प्राम और आम्रनाथदेव को जानेवाले पथ का उल्लेख । श्रीमान् महामण्डलेश्वर वीर बिम्वरसका उल्लेख । तेजुळीके महाप्रभु सोवरसके दानका उल्लेख । [नोट-खाण्डवमण्डलके बाणवंशी राजाओंके इतिहासके लिए उपयोगी लेख] [१७] हरसूर गांवके भीतर एक जिनमंदिरमें पत्थरपर-प्राचीन कन्नडमें-घिसाहुवा (लगभग सन् १०९६-९७ इ.) ... ... मस्तु ... ... ... भव्यजनानां ... ... ... ... चालुक्य प्रतापचक्रि ... ... ... विप्रसंकुळदि ... ... ... स्वस्ति [1] यम नियम ... ... ... षट्कर्मनिरत ... ... ... गुणि कालिकब्बेगं ...... काळिसेहि ...... ... ... मल्लदेव वर्षद ...... नेय धातुसंवत्सरद ... ... ... ... जयंतीपुरद नेलेवीडि ............ महामंडळे वरं कोपणपुरवराधीश्वरं ... ... ... ... गुरुपादाराधकं ........................ ... ... ... .... हिन्दी सारानुवाद-जिनशासन भव्यजनों का कल्याण करे। चालुक्य (पश्चिमी) नृप त्रिभुवनमल्लदेव विक्रमादित्य ६ वें का शासन . . . . . . महिला काळिकब्बे ... (तत्पुत्र)... काळिसेट्टि (दोनों जैन धर्ममें निरत)...... त्रिभुवनमल्लदेवके वर्ष ... ... धातुसंवत्सर में ... जयन्तीपुर से . . . महामण्डलेश्वर, कोपणपुरवराधीश्वर . . • गुरुपादाराधक . . . . . . कोप्पल जिलेसे प्राप्त शिलालेख [१८] कोप्पल गांवके भीतर किलेमें एक कबरके पास पत्थरपर-प्राचीन कन्नड में -त्रुटित ( लगभग ९ वी शताब्दि इ.) स्वस्ति श्रीनृपतुंगवल्लभ ...... ध्वस्तारातिनरेन्द्रनाळे नेसनं श्रीजै ......[1] प्रस्तावन्दलिदेन्दु तळितरिदु मत्तन्दाजियो ...... प्रस्तुत्यं पडेदं सुरेन्द्रसुखमं विक्रान्त ......[॥१] ...... रुगुणोधनप्प पडे [ विल्लीत ] ......... कदनदो ............. हिन्दी सारानुवाद-रिपुविध्वंसक नृपतुंग वल्लभके शासनकालमें . . . . . . यही उपयुक्त क्षण है यह निश्चयकर और उस दिन युद्धक्षेत्रमें बहादुरीसे प्रचण्ड युद्ध करके उस शूरवीरने सुरेन्द्रसुख प्राप्त किया। [नोट-जैनधर्म के महान हितैषी राष्ट्रकूट नरेश नृपतुंग वल्लभ से संबंधित लेख] [१९] कोप्पलके पहाडके एक प्रस्तर पर-प्राचीन कन्नडमें (सन् ८८१-८२ इ.) स्वस्ति [1] श्रीशकवरिष एण्टुनूर मूरनेय परिसदन्दु कुण्डकुन्दान्वयद एकवटुगद भटारर शिष्यर श्रीसर्वनन्दिभटाररिलिन्दु अर्गन्तीर्थकदुपकारिगळागि पलकालन्तपंगेय्दु संन्यसनमोन्तु मुडिपिदर ॥] भनवरतशाबदानप्रविमलचारित्रजलधचित्रम् [1] दुरिवनिदायविधातं कुर्यात् श्रीसर्वनन्दीन्द्रः ॥ मंगळम् [1]

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