Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 453
________________ 427 APPENDIX DE [३०] कोप्पलके पहाडमें एक पाषाणखंडपर-कन्नडमें (लगभग १६ वी शताब्दि इ.) श्रीमच्छापाचंद्रनाथस्वामी विजयते [1] श्रीमद् देवेंद्रकीर्तिभट्टारकर मडिय पाद अवर प्रिय [ शिष्यरुमा ] वर्धमानदेवरु [ कटि ]सिदरु [॥] हिन्दी सारानुवाद-श्रीमान् छायाचन्द्रनाथ जयवंत हों। श्रीमान् देवेन्द्रकीर्ति भट्टारकके चरण चिन्होंको उनके प्रिय शिष्य वर्धमानदेवने उत्कीर्ण कराया। [३१] यह तथा निम्नलिखित चौदा लेख कोप्पलके पहाडमें एक गुफेके भीतर, जिसमें अंक २२ का शिलालेख है, उपलब्ध हुए। किसी ढंगके शाई से लिखे हुए यह सब प्रायः यात्रिकों के नाम हैं। (लगभग १० से १३ वी शताब्दि इ.) पारिसकीर्तिदेवर बंदरु [1] हिन्दी सारानुवाद-पारिसकीर्ति देव इस स्थानमें आये थे। । [३२] करहडद इंद्रनागंण । हिन्दी सारानुवाद-करहडके इन्द्रनागण्ण यहां आये थे। [३३] पायण बंदरु [1] प्लवंग सं [1] हिन्दी सारानुवाद-प्लवंग संवत्सरमें पायण इस स्थानमें आया था। [३४] मासोपवासि महानंदि [1] हिन्दी सारानुवाद-मासोपवास करनेवाले महानन्दि यहां आये थे। [३५] बस्तिय सांतप्प [1] हिन्दी सारानुवाद-जैन मन्दिरका सान्तप्प यहां आया था। [३६] चकजीय चंद्रप्प [1] हिन्दी सारानुवाद-चक्कजीय चन्द्रप्प इस स्थानमें आये थे। [३७] लखंण [1] हिन्दी सारानुवाद --लखण्ण इस स्थानमें आया था।

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