Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 452
________________ 426 [२७] कोप्पल पहाडमें एक प्रस्तर पर - प्राचीन कन्नडमें ( लगभग १३ वी शताब्दि इ. ) ... ...... श्रीमतु मूलसंघ सेनगण ... . देवभटारर .. गुड्डु .. डे सेट्टियमग. पायणन निषिधि [ ॥ ] हिन्दी सारानुवाद - यह निषिधि (स्मारक) मूलसंघ सेनगणके .... देवभटारके शिष्य • सेट्टिके पुत्र स्वर्गीय पायणकी स्मृतिमें बनायी गई । तथा........ ...... JAINISM IN SOUTH INDIA [२८] कोप्पल गांवके भीतर नेमिनाथ मंदिर में एक पत्थरपर - प्राचीन कन्नडलिपिमें, त्रुटित तथा जीर्ण ( सन् १२४० इ. ) ... पद्मावती प्रसाददत्त निरुपममहिमे [शक वर्ष ] ११६३ नेय स (शा) वेरी संवत्सरद कोडेक . • कोडे गोपुरपुरःस्थापितच्छत्रत्रय दक्षिणस्यां दिशि तुंग प्रदेशस्थापितशिला ........... हिन्दी सारानुवाद - प्रतापचक्रवर्ती सिंहण ( यादव नरेश ) के शार्व्वरी संवत्सरमें, अनेक राजाओंके मुकुटोंके अग्रभागसे पूजित चरण भौरे ( शिष्य या भक्त ) ... राजश्रेष्ठी के नियोग ( आफिस ) दरवाजासे दक्षिण दिशा में तुंगभद्रा १० मत्तर ...... 1 ... राजश्रेष्ठिनियोग . राजराज किरीटतटपूजित दक्षिणाशेष ... धर्मकार्य निमित्तं • मुकोडेय कल् ... गुल्मः ......... ... भृंगर्नु ...... ... प्रतापचक्रवर्ति सिंहण घळे , सुक्कोडे कल् स्थापितचतुः कोणशिला । [ २९ ] कोप्पलमें एक मंदिर स्तंभपर - प्राचीन कन्नडमें ... ... ... मत्तरु १० शकवर्ष १९६३ के पदकमलोंके दान कार्यके लिए .. नगर [ नोट - लेख में त्रिछत्र से समन्वित पाषाणोंसे भूमिकी सीमाका निर्देश है । लेख तत्कालीन सामाजिक इतिहास की दृष्टिसे महत्त्वका है । इसमें वाणिज्यसंघके एक सदस्यको राजश्रेष्ठी लिखा है और उसके आफिसका निर्देश है । ] ( लगभग १३ वी शताब्दि इ. ) ... स्वस्ति [1] श्रीमद् गौरादेवियर हडपद लख्खा ये सांतलदेवियर बसदिगे चिक्कोडिय होलदल्लि मूह मत्तह hor नूरुपदिंवर her सर्वबाधापरिहारबागि हडेदु कोह शासन [1] आा स्थळके सीमेयेन्तेंदडे मूडलरसिय बसदिय मान्यद हत्तुगेविंदगलद घळे १४ ॥ - बडगलु तीर्थदबसदिय भोगस्थळद मान्यद हत्तुगेयिं नीळद घळे ४७ पडुवलु तिमंबरसिय बसदिय मान्यद हत्तुगेयिं बडगलगलद घळे १४ ॥ - तेंकलरसियनसदिय मान्यद मत्तरोन्दर हत्तुगेमिं नीळद घळे ४७ [ ॥ ] हिन्दी सारानुवाद - श्रीमती गौरादेवीके ताम्बूलाध्यक्ष लक्खार्यने चिक्कोडके क्षेत्रमें स्थानीय ११० प्रतिनिधिओंसे सब बाधाओं (कर आदि) से रहित प्राप्त कर तीन मत्तर प्रमाण कृप्य भूमि को शान्तलदेवी की बसदिके लिए दान में दिया जिसका कि यह शासन पत्र है । इसके बाद चारों दिशाओंमें भूमिकी सीमाका निर्देश है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495