Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 450
________________ JAINISM IN SOUTH INDIA हिन्दी सारानुवाद-शक संवत् ८०३ में कुन्दकुन्दान्वयके एकचढगद भारक (मिट्टीके पात्रधारी) के शिष्य श्रीसर्वनन्दि भट्टारकने इस स्थानमें निवास कर यहां नगरवासी लोगों को अनेक उपदेश दिए और बहुत समय तक कठोर तपश्चरण कर सभ्यास विधिसे अन्त किया। श्रीसर्वनन्दि सब पापों की शान्ति करें। [नोट-इससे एक नये सर्वनन्दि भट्टारक और उनके गुरु का पता चलता है। यहां भाषा विज्ञान के कुछ नये शब्द भी मिलते हैं। [२०] कोप्पलके पहाडके ऊपर एक प्रस्तर पर-प्राचीन कन्नडमें (लगभग १० वी शताब्दि इ.) जटासिंगनंदि भाचार्यर पदव चावय्यं माडिसिदं [॥] हिन्दी सारानुवाद-चावय्यने आचार्य जटासिंहनन्दिके चरण चिन्होंको निर्मापित किया। - [नोट-आचार्य जटासिंहनन्दिके उल्लेखका महत्त्वपूर्ण लेख । संभव है वरांगचरितके कर्ता आचार्य जटासिंहनन्दि-जो कि ७ वी इ हुए थे-का यह तपःस्थान रहा हो, और इस परम्पराको जागृत करनेके लिए उनके चरणचिन्ह १० वीं शताब्दीमें स्थापित किये गये हों।] [२१] कोप्पलके किलेकी दीवारमें एक मूर्तिक पीठपर-कन्नड लिपिमें __(लगभग १० वी शताब्दि इ.) ॐ जिनबिंबाय नमः [1] हिन्दी सारानुवाद-ओम् । जिन प्रतिमाके लिए नमस्कार । [२२] कोप्पलके पहाडमें एक गुफेकी दीवारपर-प्राचीन काडमें (लगभग १००८ इ.) स्वस्ति [1] श्रीविक्रमादित्यन प्रथमराज्यदोलु श्रीसिंहनन्दितम्मडिगळ् इंगिनीमरणदोळा ओन्दु तिगळिं साधिसिदोर [1] श्रीसिंहनन्दि भण्ण- मतिसागर अण्णनुन्नरलोकमित्रनुं ब्रह्मचारिअण्ण- नाल्वरं विनयंगेरदार स्वामिकुमारनु । पोसतु जिनबिंबमं पूजिसे दिविजर् बिबुकुन्देयोळ् निरिसि जग-[1] केसविर्द नागदेवन बसदिय कल्याणकीर्ति कीर्तिगे नोन्तं ॥ [१] ओ गहनमो निरिसिदनुत्तुंगाद्रियमेगे सिंहणन्धाचार्य ब-[1] न्दिगिणिमरणंगेयदोडसंगदे कल्याणकीर्ति जिनशासनम ॥ [२] मोदलिदितळवट्ट देसिगगण श्रीकोण्डकुन्दान्वयास्पदमाचार्यरवार्यवीर्यरनघर् चान्द्रायणाधीशरो- [1] प्पोदबुन्दन्तरि बळिके पलरुं कर्मक्षयंगेयदरावुदनेबें बळिकित्त सन्द रविचन्द्राचार्यरिंदोळियोळ् ॥ [३] गुणसागरमुनिपतिगळ् गुणचन्दमुनीन्द्ररभयणन्दिमुनीन्द्र-। गणदीपकरेनिसिद माषणन्दिगळ् नेगळ्दरीबळिक्रमादिन्द ॥ [४] कबुतपमिङ्गिणिमरणदोळोडलं तवे नोन्तु सिंहनन्याचार्य [1] मुडिपिदेडेयोन बेडेग पडेदिरे माडिसि जिनेन्यत्वाळयम [॥ ५] अतिसयदे शान्तिनाथन प्रविष्ठयं विचकुन्देयोल माडि महोबत धर्मकार्यदि बसुमतियोळ कल्याणकीर्तिमुनिपर नेगकदर [ ॥ ६.]

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