Book Title: Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Author(s): P B Desai
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 451
________________ APPENDIX II 428 हिन्दी सारानुवाद-श्री विक्रमादित्यके प्रथम वर्ष श्रीसिंहनन्दिने एक माह तक अभ्यास कर समाधिमरणसे स्वर्गवास पाया । सिंहनन्दि, मतिसागर, नरलोक ब्रह्मचारि और स्वामिकुमार ने अन्तिम संस्कार किया । नागदेव बसदिके कल्याणकीर्तिने विशुकुन्देमें जिनभगवान्की अनुपम मूर्तिकी प्रतिष्ठा कर प्रसिद्धि प्राप्त की थी । कल्याणकीर्तिने सिंहनन्द्याचार्यके सम्मानमें जिनभगवान्के स्मारकको स्थापित किया । देशिग गण, कुन्दकुन्दान्वयमें रविचन्द्राचार्य, गुणसागर, गुणचन्द्र, अभयणन्दि और माघनन्दि आचार्य हुए । कल्याणकीर्तिने सिंहनन्दिके मरणस्थल पर जिन-भगवान्के मन्दिरका निर्माण कर तथा बिचुकुन्देमें शान्तिनाथ भगवान्की मूर्तिकी प्रतिष्ठा कर प्रसिद्धि प्राप्त की। [नोट-यह लेख देशिगणके आदिम आचार्योंके इतिहासकी दृष्टिसे महत्त्वका है।] [२३] कोप्पल गांवमें उपलब्ध एक मूर्तिके पीठपर-कन्नड लिपिमें (लगभग ११ वी शताब्दि इ.) देवादिसद्रूपं माचिदेवेन कारि ... सामरायपरोक्षयशो ...... कुशजिनालये ॥ पार्श्व ॥ हिन्दी सारानुवाद-कुश जिनालयमें सामरायकी स्मृति और यशके लिए माचिदेवने.... देवके आदि और सपको निर्माण कराया । यह पार्श्वनाथ ....। [२४] ___कोप्पल गांवमें उपलब्ध एक मूर्तिके पीटपर-कन्नड लिपिमें (लगभग ११ वी शताब्दि इ.) ... देवा ... द्रूपं ...... सामरायपरो ....... कुशजिनालये ...... प्रभ [1] हिन्दी सारानुवाद-कुश जिनालयमें .... देवके .... सद्रूपको सामरायकी स्मृति में निर्माण कराया । यह.... [चन्द्र] प्रभ....। [२५] कोप्पल गांवमें उपलब्ध एक मूर्तिके पीठपर-प्राचीन कन्नडमें (लगभग १२ वी शताब्दि इ.) श्रीमूलसं[घ ]द बलकरग[ ण ]द पुष्पदंततीर्थंकर सौददलि बोम्मिसमग सांसज माडिद प्रतिमे [॥] हिन्दी सारानुवाद-मूलसंघ बलकर गण (वलात्कारगण) के पुष्पदन्ततीर्थङ्करके भवन (मन्दिर) में बोम्मिसके पुत्र सासजने प्रतिमा निर्माण की। [२६] कोप्पलके पहाडमें एक प्रस्तरपर-प्राचीन कन्नडमें (लगभग १३ वी शताब्दि इ.) श्रीकोपणद चंद्रसेनदेवर गुड्डु गुड्डगळ चंदप्पन निसिधि [1] हिन्दी सारानुवाद-यह निषिधि (स्मारक) कोपणके निवासी, चन्द्रसेनदेवके शिष्य गुडगळ चन्दप्पकी स्मृति में स्थापित किया गया है। 54

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