Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ ( घ ) आदेश को कार्यान्वित करने के लिए उन्होंने देश के विभिन्न भागों में शिक्षालयों का जाल बिछवा दिया । उनका विश्वास था कि शिक्षा के प्रचार के बिना समाज और देश की प्रगति की कल्पना निराधार है । वे कहते थे - 'डब्बे में बन्द ज्ञान द्रव्यश्रुत है, वह आत्मा में आए तभी भावश्रुत बनता है । ज्ञानमन्दिर की स्थापना से सन्तुष्ट न होवो, उसका प्रचार हो, वैसा उपाय करो ।' श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला ( अब पाकिस्तान ), श्रीआत्मानन्द जैन कॉलेज, अम्बाला शहर, श्री उमेद जैन कॉलेज, फालना, श्रीपार्श्वनाथ जैन विद्यालय, वरकाना एवं लुधियाना, मालेर कोटला, अम्बाला शहर तथा जण्डियाला, गुरु के हाई स्कूल, अनेक कन्या विद्यालय, छात्रालय, पुस्तकालय, वाचनालय, गुरुकुल आदि गुरुवल्लभ की प्रेरणा के सुमधुर फल हैं । उनकी कृपा से बीसियों छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सहायता और छात्रवृत्तियां मिलीं। देश के यशस्वी नेता महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को भी उन्होंने दान दिलाया । अजैन छात्रों की भी मदद की । शिक्षा प्रचार के साथ-साथ साहित्य प्रकाशन के कार्यं को भी गति दी | हिन्दी भाषा में गद्य-पद्य में अनेक रचनाएँ कर जैन साहित्य की समृद्धि की । जन्म से गुजराती होते हुए भी उन्हें राष्ट्रभाषा हिन्दी से प्रगाढ़ स्नेह था । उन्होंने जो कुछ लेखनीबद्ध किया अथवा वाणी द्वारा प्रगट किया, वह सब हिन्दी में । उनके गुरु श्रीमद् विजयानन्द सूरि हिन्दी को लोकभाषा कहते थे । उनका साहित्य भी हिन्दी में ही है । अन्तिम दिनों में गुरुवल्लभ ने अनेक सुशिक्षित गृहस्थों से विचार-विमर्श किया कि विदेश में जैन धर्म के प्रचारार्थ किस प्रकार के साहित्य का निर्माण किया जाए । राष्ट्र निर्माण - गुरुवल्लभ सूरीश्वरजी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का समर्थन किया । ये शुद्ध खादी और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग तथा प्रचार करते थे । खिलाफत आन्दोलन में भी उन्होंने आर्थिक सहायता दिलवाई। मद्यनिषेध और शाकाहार प्रचार द्वारा जनता के नैतिक जीवन का स्तर ऊँचा करने का प्रयास किया । अनेक राजनैतिक नेता उन के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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