Book Title: Jain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Author(s): Arhatdas Bandoba Dighe
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 15
________________ यद्यपि समाज की भावना को साकार होने में विलंब अवश्य हो रहा था, किन्तु निराशा नहीं थी। १९७२ ई० में बड़ौदा में स्वर्गस्थ गुरुदेव के पट्टविभूषण, जिनशासन रत्न, शान्त मूर्ति आचार्यश्री विजयसमुद्र सूरीश्वर जी ने अन्तर्दृष्टि और दूरदर्शिता से जैन भारती श्री मृगावती जी को स्मारक योजना का कार्यभार सौंपा। उन्होंने गुरुभक्तिवश इसे सहर्ष स्वीकृत किया। उनके हृदय में स्मारक विषयक आद्यप्रेरणा पुनः बलवती हुई और उन्होंने निश्चय किया कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए उन्हें हर प्रकार का बलिदान करना होगा। अब क्या था ? विघ्न बाधाओं के अन्तराय रूप बादल फटने लगे और आशा की स्वर्णिम किरणे दृष्टिगोचर होने लगीं। साध्वी जी ने ग्रीष्मऋतु की कठिनाइयों की उपेक्षा कर दिल्ली की ओर उन विहार प्रारंभ कर दिया। स्मारक के लिए भूखंड की प्राप्ति के निमित्त शिष्याओं सहित उन्होंने अभिग्रह धारण कर लिया। ला० रतनचंदजी तथा श्री मदनकिशोर ने भी अनुकरण किया। श्री आत्मवल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि ट्रस्ट की स्थापना हई और १२.६. १९७४ को इसका पंजीकरण हुआ। १५-६-७४ को दिल्ली-पानीपत राष्ट्रीय मार्ग नं० १ के २०वें कि० मी० के निशान के समीप छः एकड़ भमि खरीद ली गई। अभिग्रह पूर्ण हआ। ३०-६-१९७४ को भगवान् महावीर के २५वें निर्वाण शताब्दी महोत्सव के मार्गदर्शन के लिए आचार्य श्री जी भी शिष्यमंडल सहित दिल्ली पधारे । निर्वाण शताब्दी महोत्सव के बाद आचार्य श्री जी ने पंजाब की ओर विहार किया। २७-१२-१९७४ के दिन उन्होंने स्मारक भूमि की यात्रा की तथा परिक्रमा करते हुए चारदिवारी की नींव को वासक्षेप से पवित्र किया। आकाश जयजयकार से गूंज उठा। शिक्षणनिधि ट्रस्ट के संस्थापक श्री रामलाल जी दिल्ली ने सर्वश्री सुन्दरलाल जी तथा खैराती लालजी को आजीवन ट्रस्टी नियुक्त किया। तीनों ने मिलकर १२ अन्य ट्रस्टियों का चयन किया । धारा ८० (जी) के अन्तर्गत ट्रस्ट के लिए आयकर से छूट प्राप्त की गई। इस समय ट्रस्ट बोर्ड के ३५ सदस्य हैं। बोर्ड पंजीकृत विधान के अनुसार कार्य कर रहा है। २४ ट्रस्टी तीन वर्ष के लिए निर्वाचित होते हैं। प्रतिवर्ष एक तिहाई ट्रस्टी अवकाश प्राप्त करते हैं। उनकी स्थानपूर्ति अन्य ट्रस्टी निर्वाचन द्वारा करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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