Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 10
________________ सम्पादकीय साहित्य, धर्म, दर्शन, कला, विज्ञान, इतिहास एवं संस्कृति के अनेक आयामों को जैन विद्या ने अपनी प्रतिभा से आलोकित किया है। इन्हीं का आलोचन एवं विश्लेषण उदयपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में देश के प्रख्यात चिन्नकों ने २ अक्टूबर से ६ अक्टूबर १९७३ तक आयोजित विचारसंगोष्ठी के माध्यम से किया था। इस संगोष्ठी में अंग्रेजी में पठित शोध-निबन्धों का प्रकाशन मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली ने 'कंट्रीब्यूशन ऑफ जैनिज्म ट इंडियन कल्चर' के नाम से किया है। विषयों की विविधता एवं प्रामाणिकता की दृष्टि से उपर्युक्त प्रकाशन भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण वर्ष की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । इसी संगोष्ठी में पठित हिन्दी के शोध-पत्रों का यह संग्रह उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण प्रमाणित होगा, इस आशा के साथ 'जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान' प्रस्तुत किया जा रहा है। आचार्यश्री तुलसी जैन धर्म एवं दर्शन, साहित्य व संस्कृति के प्रकाशन, प्रचार एवं प्रसार के लिए नाभिस्थान तथा दीपस्तम्भ हैं। उन्हीं की प्रेरणा एवं साधना का परिणाम है- आगमों का संपादन-प्रकाशन, विद्वत्-संगोष्ठियों का वार्षिक आयोजन एवं अनेक विश्वविद्यालयों में जैन-शोध की प्रवर्तना। अणुव्रत आन्दोलन के द्वारा उन्होंने सारे देश में नैतिकता की नवीन देशना दी है। उन्हीं के आशीर्वाद का फल है प्रस्तुत प्रकाशन । मुनिश्री नथमल जी जैन विद्या के निष्णात महामनीषी हैं। उनका आशीर्वचन इस ग्रंथ का तात्त्विक अलंकार है। इस पुस्तक के सुयोग्य प्रबन्ध-सम्पादन के लिए हम बन्धुवर श्री कमलेश चतुर्वेदी के हृदय से कृतज्ञ हैं। भगवान महावीर के निर्वाण-वर्ष में अनेक उत्सवों, समारोहों आदि का देश भर में वर्षव्यापी आयोजन हुआ। इनमें विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आर्थिक सहयोग से विचार-गोप्ठियों का आयोजन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। जैन मुनियों, जैन समाज तथा विश्वविद्यालय के विद्वानों के संयुक्त प्रयत्नों का ही यह सुपरिणाम है कि देश के विभिन्न नगरों

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