Book Title: Jain Vidya 05 06 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 2
________________ मुखपृष्ठ चित्र परिचय प्रस्तुत अंक के मुखपृष्ठ पर मुद्रित चित्र संस्थानान्तर्गत पाण्डुलिपि विभाग के जम्बूसामिचरिउ की पाण्डुलिपि वेष्टन सं. 306, लिपि संवत् 1516, लिपिस्थान भुणभुणु, पत्र सं. 76 के अंतिम दो पृष्ठों के हैं जिनका मूलपाठ यहां उद्धृत किया जा रहा है । इस प्रति का उपयोग डॉ. विमलप्रकाश जैन ने अपने शोध प्रबन्ध में 'ख' प्रति के रूप में किया है। इसका आकार 11”+58" है तथा 62 वां पत्र इसमें नहीं है । • सामिचरिए सिंगारवीरे महाकव्वे महाकइ देवयत्त सुय वीर विरइए बारह अणुपेहाउ भावणाए विज्जुच्चरस्स सव्वट्टसिद्धि गमणं नाम एयारसमो संधी परिछेउ सम्मत्तो ।। संधिः ॥ 11 ॥ ............ वरिसारण सयचउक्के णिव्वाणा उववण्णे विक्कममणिव कालाओ माहम्मि सुद्धपक् सुणियं प्रायरियपरंपराए बहुलत्थ पमत्थपयं इत्थेव दिणे मेहवणपट्टणे तेणावि महाकइरा बहुरायकज्जधम्मत्थ - वीरस्स चरियकरणे जस्स कय देवयत्तो सुहसीलसुद्धवंसो जस्स य सण्णवयणा सहिल्ल लखका जाया जस्स मरिट्ठा लीलावर तितईय पढमकलत्तं गरुहो विजययुणमरिगणीहाणो सो जयउ कय वीरो सत्तरि जुत्ते जिणेंद वीरस्स विक्कमकालस्स उपपत्ती वरिसाणं छाहत्तरदससएसु पाहाणमयं भवणं ग्रह जयउ जसाणिवासो वीरजिणालय सरिसं । || 1 || । 11 2 11 दिवसम्मिसंत्तम्मि वीर एदि । चरियमुद्धरियं दसम्मी वीरेण पवरमिणं वढ्माण जिणपडिमा I वीरेण पर्याया पवरा 11 4 11 कामग्गोट्टीविहत्तसमयस्स । एक्को संवत्सरो लग्गो ।। 5 ।। जणणो सच्चरियलद्धमाहप्पो । जणणी सिरि संतुग्रा भाणिया ।। 6 ।। लहुणो सुभइ ससहोयरा तिण्णि । जसइणामेत्ति विखाया 11 7 11 जिणवइ पोमावइ पुणो वीया । पछिम भज्जा जयादेवी ।। 8 । संताणकयत्तविडविपारोहो 11 3 11 1 तण उ तह णेमिचंदो त्ति ।। 9 ।। वीरजिणंदस्स कारिय जेण । मेहवणे || 10 11 पियरुद्दे से ग जस गाउ पंडिउ त्ति विक्खाउ । चरियमिणं कारियं जेण || 11 || इति जंबूसामिचरितं समाप्तं ।। श्री । मन्ये वयं पुण्यपुरीव भाति । सा भूभुणेति प्रकटी वभूव । प्रोत्तुंग तन्मंडन चैत्यगेहाः सोपानवद्यति नाकलोके ।। 1 ।। पुरस्सहराराम जलव्रकूपा हर्म्यारिण तत्रास्ति रत्तीव रम्याः । दृश्यंत लोकार्घन पुण्यभाजा ददाति दानस्य विशालशाला ।। 2 ।। श्री विक्रमानगते शताब्दे षडेकपंचैक सुमार्गशीर्षे । त्रयोदशीया तिथि सर्व्वसुद्धा श्री जंबुमामीत्ति च पुस्तकोयं ।। 3 ।।Page Navigation
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