Book Title: Jain Vidya 03 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 2
________________ मुखपृष्ठ चित्र परिचय ___ इस अङ्क के मुखपृष्ठ पर संस्थान के पाण्डुलिपि सर्वेक्षण विभाग में उपलब्ध महाकवि पुष्पदंत की दो रचनाओं 1. जसहरचरिउ एवं 2. णायकुमारचरिउ की प्राचीनतम पाण्डुलिपियों की अन्त्य-प्रशस्तियों के कुछ अंश के चित्र हैं जिनका भाव निम्न प्रकार है ___ 1. ऊपर-जसहरचरिउ की यह प्रति सम्वत् 1580 आसोज सुदि 10 शनिवार को श्रीपथ नामक नगर के पास स्थित सिकन्दराबाद में सुलतान इब्र हीम के राज्यकाल में मूलसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ कुन्दकुन्दान्वय के भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य तर्क, व्याकरण, छन्द, साहित्य, सिद्धान्त, ज्योतिष, वैदिक एवं संगीत-शास्त्र के पारंगत विद्वान्, जिनकथित सूक्ष्म सात तत्त्व, नव पदार्थ, छह द्रव्य, पंचास्तिकाय, अध्यात्म ग्रंथों के समुद्र में महारत्न के समान, शीलव्रतसागर, सम्पूर्ण ग्यारह प्रतिमाओं के निरतिचारपालक, देशव्रतियों में तिलकीभूत ब्रह्म बीझा की आम्नाय में खण्डेलवाल श्रावक सा० दोदू ने लिखवाकर ब्रह्म बीझा को दी थी। 2. नीचे—णायकुमारचरिउ की यह प्रति संवत् 1612 आसोज कृष्णा द्वादशी गुरुवार को तक्षकगढ़ (टोड़ा रायसिंह) के राव रामचन्द्र के राज्यकाल में आदिनाथ चैत्यालय में भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य मण्ड लाचार्य धर्मचन्द्र के शिष्य मण्डलाचार्य ललितकीति की आम्नाय में खण्डेलवाल अन्वय के साबडा (छाबड़ा) गोत्रीय सा० पूना की भार्या बाली ने लिखवाकर सोलहकारण व्रत के उद्यापन में मं० श्री ललितकीति को भेंट की थी। दोनों ही प्रशस्तियों की पूर्ण प्रतिलिपियाँ इस ही अंक में श्री मुन्नालाल के निबंध में पृष्ठ 89 एवं 88 पर क्रमशः प्रकाशित हैं पाठक वहाँ अवलोकन करें।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 120