Book Title: Jain Tattva Saragranth Satik Author(s): Surchandra Gani, Manvijay Gani Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala View full book textPage 6
________________ FFFFERENEFITSELIES प्रस्तावना - आत्मनि अधिकृत्य अध्यात्मम् । अध्यात्म आत्माने साचा स्वरूपमा पीछानवा सिवायनी सर्व करणी निष्फळपाय कही छे. एटला माटे ज जैन शास्त्रकारोए आत्माने ओळखमा माटे-आत्मानुं स्वरूप जाणवा माटे अनेकविध ग्रंथोनी रचना करी छे. आत्माने ओळखवो, आत्मानी नजीक जq तेनुं नाम अध्यात्म छे. ज्यारे साची अध्यात्मदशा प्राप्त थाय छे त्यारे जीव निर्वाणप्राप्तिनी तैयारी करे छे. आत्माने ओळखवा माटे जीव अने तेना साथे संबंध धरावता समग्र पदार्थोनुं यथास्थित स्वरूप जाणवू जोइए अने तेने माटे जैन शास्त्रकारोए “नव तत्त्वो" नी गूंथणी करी छे. आपणा आ प्रस्तुत ग्रंथ "जैनतत्वसार" मां नव तत्त्वोनी स्पष्टतया नहीं परन्तु प्रकारान्तरे रूपरेखा समजाववामां आवी छे. ए उपरांत ते विषयने वधु स्फोट करवा माटे घणाए लौकिक उदाहरणो आपवामां आव्या छे. सुखामिलाषा दरेक प्राणीने सुख प्रिय होय छे, परन्तु अमिथी कदी कमळनी उत्पत्ति थई सांभळी छे ! तेम आ जीवनो तदनुकूल प्रयत्न नथी H ॥ ३ ॥Page Navigation
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