Book Title: Jain Tattva Saragranth Satik
Author(s): Surchandra Gani, Manvijay Gani
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
View full book text ________________
CARSAGARMACESS
जिनभद्रसूरि
मेरुसुंदर पाठक
हर्ष पाठक प्रिय पाठक चारित्र पाठक
उदय वाचक वीरकलश सुरचंद्र वाचक
पद्मवल्लभगणि स्फुरणा
आपणे जाणीए छीए तेम आपणी बेदरकारीथी घणाए प्राचीन ताडपत्रो अने हस्तलिखित प्रतो माटीमां मळी गया छे. भंडारमा भंडार्या पछी वर्षों सुधी तेनी सार-संभाळ न कर्याथी अति कीमती ग्रंथो उधइने भोग थइ पड्या हता. आ ज कारणथी आपणा पूर्वाचार्योए आपणने आपेल अमूल्य ज्ञान-भंडाररूप वारसो आपणे गुमावता आव्या छीए. पू. अनुयोगाचार्य पंन्यासजी महाराजश्री मानविजय महाराज विहार करता करतां वडोदरा पधार्या. वडोदराना ज्ञानभंडारना हस्तलिखित ग्रंथोनुं लिस्ट तपासतां अचानक तेमनी दृष्टि “जैन तत्त्वसार" पर पडी अने आवा अमूल्य ग्रंथनो उद्धार करवानी तेमने स्वाभाविक स्फुरणा थइ अने ते धन्य स्फुरणाने परिणाम आ ग्रंथ मुद्रितावस्थामा समाज समक्ष रजू करवा भाग्यशाळी थयो छु.
SAGARALSCRECARROCECRECIES
Loading... Page Navigation 1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 328