Book Title: Jain Tattva Saragranth Satik
Author(s): Surchandra Gani, Manvijay Gani
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 14
________________ ॥ ७ ॥ A%AC %AA%AA%%*** विषय पत्र पृष्ठ सिद्धारमनः कर्मग्रहणनिराकरणोक्तिलेशः षष्ठोऽधिकारः श्लोक ११ सिद्धानाम् कर्मादानस्वभावस्य वर्जनम् ... ... २६१ संसारशून्यतामोक्षाभरणतादृष्टान्तोक्तिलेशः सप्तमोऽधिकारः श्लोक १२ मुक्तिप्रवाहाविच्छिन्नता संसारभव्याशून्यता ... ... २९ १ परब्रह्मविचारोक्तिलेशोऽष्टमोऽधिकारः श्लोक ६९ परब्रह्मणः स्वरूपम् ... ... ... ... ३३ । परब्रह्मणः सृष्टिरचना तत्रैव प्रलयानुपपत्तिश्च ईश्वरमायातो जगद्रचनानुपपत्तिः ... ... ... ४३ २ स्वतः ईश्वरेण जीवानां सृष्टिसंहारानुपपत्तिः ... ... ४६ २ कर्मणा जीवस्य सुखदुःखादिर्भवति, तथापि परमेश्वरे कर्तृ. स्वारोपण ... ... एकक्षेत्रेऽनेकसिद्धावस्थानाभिधानोक्तिलेशो नवमोऽधिकारः श्लोक ११ विषय ब्रह्मणः स्वरूपम् ... ... ... कालादि पञ्चभ्यो जगदुत्पति तत्प्रलयश्च ... ब्रह्मणो ब्रह्मणि लीनत्वं, ज्योतिषि ज्योतिषो मेलनं ... ५४ ब्रह्मसिद्धयोर संकीर्णता ... ... ... निगोदजीवानां क्षेत्रस्थितिगमागमकर्मबन्धादिनिदर्शनो क्तिलेशो दशमोऽधिकारः श्लोक ४१ निगोदजीवानामनन्तकालपर्यन्तम् निगोददुःखे वसनम् ... ५६१ निगोदजीवानामदृष्टता ... ... ... ... ५९ १ निगोदजीवानामाहारादिकरणेऽपि न गुरुत्वम् .... ... . २ निगोदजीवा अनन्तकालं यावत् दुःखिनो भवेयुस्ताहगू कर्मबन्धनं च कुर्वन्ति ... ... ... ... ६२ निगोदजीवानां मनो विनापि कर्मबन्धनं भवति ... ६४ जीवपुद्गलधर्मास्तिकायादिपूर्णेऽपि लोके तथैवावकाशो क्तिलेश एकादशोऽधिकारः श्लोक ८

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