Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५] સારસમુચકુલકમ [१२३ जह वा एसो देहो वाहीहिं अहिडिओ दुहं लहइ । तह कम्मवाहित्थो जीवो वि भवे दुहं लहइ ॥ २५ ॥ जायंति अपच्छाओ वाहिओ जहा अपच्छनिरयस्स। संभवइ कम्मवुड्ढी तह पावा पच्छनिरयस्स ॥ २६ ॥ अइगरुओ कम्मरिऊ कयावयारो य नियसरीरत्थो । एस उविक्खिज्जंतो वाहि व्व विणासए अप्पं ॥ २७॥ मा कुणह गयनिमोलं कम्मविघामि किं न उज्जमह । लघृण मणुयजम्मं मा हारह अलियमोहहया ॥ २८ ॥ अच्चंतविवज्जासियमइणो परमत्यदुक्खावेसु । संसारमुहलवेसुं मा कुणह खणं पि पडिबंधं ॥ २९ ॥ किं सुमिणदिट्ठपरमत्थमुन्नवत्थुस्स करहु पडिबंध । सव्वं पि खणियमेयं विहडिस्सइ पेच्छमाणाण ।। ३०॥ संतंमि जिणुद्दिढे कम्मक्खयकारणे उवायंमि । अप्पायत्तंमि न किं तद्दिट्ठमया समुज्जेह ॥ ३१॥ जह रोगी कोइ नरो अइदुसहवाहिवेयणादुहिओ। तदुहनिम्विन्नमणो रोगहरं वेज्जमन्निसइ ॥ ३२ ॥ तो पडियन्जइ किरियं सुवेज्जभणियं विवज्जइ अपच्छं । तुच्छन्नपच्छभोई ईसी सुवसंतवाहिदुहो ॥ ३३ ॥ ववगयरोगायंको संपत्ताऽऽरोग्गसोक्खसंतुट्ठो। बहु मन्नेइ सुवेज्ज अहिणं देइ वेजकिरियं च ॥ ३४॥ तहु कम्मवाहिगहिओ जम्मणमरणाउइन्नबहुदुक्खो। तत्तो निम्विन्नमगो परमगुरुं तयणु अनिसइ ॥ ३५ ॥ लद्धंमि गुरुमि तओ तब्बयणविसेसकयअणुट्ठाणो । पडिवज्जइ पव्वज पमायपरिवजणविसुद्धं ॥ ३६॥ नाणाविहतवनिरओ सुविसुद्धासारभिक्खभोई य । सव्वत्थ अप्पडिबद्धो सयणाइसु मुक्कवामोहो ॥ ३७॥ एमाइ गुरुवइठं अणुट्ठमाणो विसुद्धमुणिकिरियं । मुच्चइ नीसंदिद्धं चिरसंचियकम्मवाहीहि ॥ ३८ ॥ આ “ સારસમુચ્ચયાલક' પાટણના ખેતરવસીના તાડપત્રીય ભંડારની (અનં૬ ૫. ૧૨૫ થી ૧૨૮) પ્રતિ ઉપરથી ઉતારીને અહીં આપ્યું છે. For Private And Personal Use Only

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