Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 02 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १३ सो दाया सो तवसी सो य सुही पंडिओ य सो चेव । जो सव्वसुक्खबीयं जीवदयं कुणइ खंतिं च ॥ १० ॥ किं पढिएण सुएण व वक्खाणिएण काई किर तेण। जत्थ न नज्जइ एयं परस्स पीडा न कायव्वा ॥ ११ ॥ जो पहरइ जीवाणं पहरइ सो अत्तणो सरीरंमि । अप्पाण वेरिओ सो दुक्खसहस्साण आभागी ॥१२॥ जं काणा खुज्जा वामणा य तह चेव रूवपरिहीणा । उप्पज्जति अहन्ना भोगेहि विवज्जिया पुरिसा ॥ १३ ॥ इय जं पाविति य दुहसयाइं जणहिययसोगजणयाई । तं जीवदयाए विणा पावाण वियंभियं एयं ॥ १४ ॥ जं नाम किंचि दुक्खं नारयतिरियाण तह य मणुयाणं। तं सव्वं पावेणं तम्हा पावं विवज्जेह ॥ १५ ॥ सयणे धणे य तह परियणे य जो कुणइ सासया बुद्धी । अणुधावंति कुढेणं रोगा य जरा य मच्चू य ॥ १६ ॥ नरए जिय ! दुस्सहदेयणाउ पत्ताउ जाओ पइं मूढ ! । जइ ताओ सरसि इन्हि भत्तं पि न रुच्चए तुज्झ ॥ १७ ॥ अच्छंतु ताव निरया जं दुक्म्यं गम्भवासमझमि । पत्तं तु वेयणिज्जं तं संपइ तुज्झ बीसरियं ॥ १८ ॥ भमिऊण भवग्गहणे दुक्खाणि य पाविऊण विविहाई । लब्भइ माणुसजम्म अणेगभवकोडिदुल्लं में ॥ १९ ॥ तत्थ वि य केइ गब्मे मरंति बालत्तणमि तारुने । अन्ने पुण अंधलया जावज्जीवं दुहं तेसिं ॥ २० ॥ अने पुण कोढियया खयवाहीसहियपंगुभूया य । दारिदेणऽभिभूया परकम्मकरा नरा बहवे ॥ २१ ॥ ते चेव जोणिलक्खा भमियव्वा पुण वि जीव ! संसारे । लहिऊण माणुसत्तं जे कुणसि न उज्जमं धम्मे ॥ २२॥ इय जाव न चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स। जीवदयाउवउत्तो ता कुण जिणदेसियं धम्मं ॥ २३ ॥ कम्मं दुक्खसरूवं दुक्खाणुहवं च दुक्खहेउं च। कम्मायत्तो जीवो न सुक्खलेसं पि पाउणइ ॥ २४ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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