Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 02 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जेशिंगभाईकी वाडी : घोकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) वर्ष १३ ॥ भि स. २००४ : वीनि. स. २४७४ : इ. स. १६४८ ॥ क्रमांक अंक ५ | माई शुढि ५ : २१०३ : १५भी वारी ॥ १४९ सारसमुच्चयकुलकम् । संपादक:-पूज्य मुनि महाराज श्रीकांतिविजयजी नरनरवइदेवाणं जं सोक्खं सव्वमुत्तमं लोए । तं धम्मेण विढप्पइ तम्हा धम्म सया कुणह ॥ १ ॥ उच्छभा किं च जरा नहा रोगा य किं मयं मरणं । ठइयं च नरयदारं जेण जणो कुणइ न य धम्मं ॥२॥ जाणइ जणो मरिज्जइ पेच्छइ लोओ मरतयं अन्नं । न य कोइ जए अमरो कह तह वि अणायरो धम्मे ?॥३॥ जो धम्म कुणह नरो पूइज्जइ सामिउ व्य लोएण। दासो पेसो व्व जहा परिभूमी अत्थतल्लिच्छो ॥ ४ ॥ इय जाणिऊण एवं वीसंसह अत्तणो पयत्तेण । जो धम्मओ चुक्को सो चुक्को सव्वसुक्खाणं ॥५॥ धम्मं करेह तुरियं धम्मेण य हुंति सव्वसुक्खाई । सो अभयपयाणेणं पंचेन्दियनिग्गहेणं च ॥ ६ ॥ मा कोरउ पाणिवहो मा जंपह मूढ अलियवयणाई । मा हरह परधणाई मा परदारे मई कुणह ॥ ७॥ धम्मो अत्यो कामो अन्ने जे एवमाइया भावा । हरइ हरंतो जीयं अमय दितो नरो देइ ॥ ८ ॥ न य किंचि इहं लोए जीयाहिंतो जियाण दइययरं । तो अभयपयाणाओ न य अन्नं उत्तमं दाणं ॥९॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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