Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 07 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशतरङ्गिणी के कुछ शब्द ( लेखक-श्रीयुत मूलराजजी जैन, एम. ए., एल-एल. बी.) उपदेशतरङ्गिणी के कर्ता नन्दिरनगणि के शिष्य रत्नमन्दिर गणि हैं। इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी है क्योंकि सं. १५१७ में इन्होंने " भोजप्रबन्ध ''की रचना की।२ यद्यपि उपदेशतरङ्गिणी मूलतया संस्कृत भाषा में है तथापि इसमें प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, हिंदी के अनेक पद्य उद्धृत किये गये हैं । गधभाग में भी बहुत से ऐसे शब्द हैं जो किसी कोष में नहीं मिलते । ये प्रचलित भाषाओंसे लिये गये प्रतीत होते हैं। यहां कुछ शब्दों पर विचार किया जायगा । .. रत्नमन्दिर ने अपने समय के अथवा अपने से कुछ पूर्ववर्ती श्रावकों और तीर्थों का उल्लेख किया है। इससे यह पुस्तक न केवल भाषा की दृष्टिसे प्रत्युत इतिहास को दृष्टिसे भी महत्त्वशाली है। १. खुन्द ___एकदा स्तम्भपुरे केऽपि सितपटा झोटिङ्गभट्टेन मलिककबीरदीनपाचे आकारिताः । निस्सङ्गनिरीहत्वेनाऽऽसनादिदानेऽपि भूमावुपविष्टाः । भट्टः कथयति-खुन्द ! सितपटाः कर्तारं न मानयन्ति । ( उप० तर्र० पृ० ४८) खंद-यह संस्कृत का शब्द नहीं । इसे झोटिङ्ग भट्ट (हिन्दू) अपने स्वामी मलिक कबोरदीन (मुसल्मान) को संबोधन करने में बोलता है । यह फारसी खावंद का संक्षिप्त रूप है। खावंद भी खुदावंद का रूपान्तर प्रतीत होता है । जिनप्रभसरिकृत १. शाह हर्षचंद भूरामाई द्वारा वीर सं. २४३७ में बनारस से प्रकाशित। २. जातः श्रीगुरुसोमसुन्दरगुरुः श्रीमत्तपागच्छप स्तत्पादाम्बुजषट्पदो विजयते श्रीनन्दिरत्नो गणिः । तच्छिष्योऽस्ति च रत्नमन्दिरगणिजिप्रबन्धो नवस्तेनाऽसौ मुनिभूमिभूतशशभृत्सवत्सरे निर्मितः ॥ ( उप० तरं०, प्रस्तावना पृ. १) ३. खावंद-A master; superior. F. Steingass: Persian English Dictionary. London 1930. ४. खुदावंद-A king, prince; a lord, master, तदेव । For Private And Personal Use Only

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